पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२३

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१-मिरग पन्य लाँगे जो जाहीं। २-धरम (धूम) लिपिपने 'चाय'को की तरह लिया है। ३-छार ४-पिसन। -जरि कोइला । ६-जिद्द सर जाइ होइ सतारा । ७-सरपर।८-अइम । ९- सायर | १०-धरम (धम) मेघ भये वार । ११-नुम्हार | टिप्पणी-(१) धूम-धूम्र, काला। (२) जावत-यावत, जितने भी । पसि-पक्षी । उरधि-उर्व, नाबाद | किरान-कृष्णा । परन- यर्ण, रग। जरि-जत्र । (३) फरिया-कर्णधार, पतयार सभाल्न पाला । नाउ-नाय | गुनधारा-रस्सी साचक्र किनारे रान वाला नाविक । इम इन्दका प्रयोग पदमावत (२८१६) ओर मधुमालति (१५।) में भी हुना है, किन्तु दोनों ही स्थलीपर माताप्रसाद गुप्तने इसे 'कटहारा' पढ़ा है। गाप (काप), नून, दाल (दाल), हे, अल्पि, रे, अल्पियो कडहारा' पढ रेना सहज है । स्न्तुि नीयानयन सम्बन्धी शब्दावलामे पडहारा जैसा कोई शब्द नहीं है । माताप्रसाद गुप्त और वासुदेव शरण अग्र याल, दोनोंने इस तथ्यसे परिचित न हानेरे कारण इसे सस्कृतप फर्णधारक-कर्णधारका रूप मान लिया है । विन्नु कर्णधार (पतवार सम्भाल्नेवाले नाविक) लिए करिया शब्द है । नौकानयनम नाविक तीन प्रकारके होते हैं--(१) डॉड चरानेवारे इनवा काम नावर डाँडये सहारे गति देना होता है । इन्द्र सेवक या सेवैया कहते है । (२) पतवार सम्भाल्नेवाला-इसका वाम पानी काटकर आग • बदने तथा दिशा नियन्त्रित करनेक निमित्त पतवारका सचालन करना होता है। इसे करिया कहते है। इन दोनों प्रगर नाविकाया कार्य जलवे मध्य में होता है । (३) रस्सीने सहारे नावको म्याचकर किनारे लानेयाला नासि । इसका गुनधार कहते है। बिना इसकी सहायता नायरो पिनार लाना सम्भव नहा। (४) मायर-सागर । मछि-मच्छ, मरती। रिजवा-उस पक्षी विशेष । जलहर-अचर। (६) रहि-तर। ४१९ (रीरेण्टम २९९) रसीदने सिरजन दर गहरे पाटन व सुद रफ्तन दर मुलाकाते रोप (सिरजना पाटन नगरमें पाँचकर रोरकस मिलने जाना) माँस धार चलि बाट घटाई । हरदीपाटन उतरा जाई ॥१