पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२६

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टिप्पणी-(१) मेव- मेघ । रासि-शशि । (२) विरिख-वृप । (३) विरचिक-वृश्चिक । (५) मगर~मगल। ४२३ । (रीएंट्स ३.३) ऐजन (बही) चौथे बुध मुस कछु आवइ । बिहफइ सोहम राज करावह ॥१ दुसर मंगर पॉच परवानी । बडहर पाप धरम कर हानि ॥२ छठये सनीचर देखि मेरावा । केते लयनै पनि हाथ आवा ॥३ राहु केतु पढ़ आयसु दिलावहिं 1 मिले बुहुँच घर दसर्ये आपहिं ॥४ जो न होइ अस जीड उतारउँ । गुनित टूट तो पोथा फारउँ ॥५ गंग नीर तुम्ह अन्हडप, दास बेल फर खाब ६ पाप कुण्ड सप बज लोरफ, गंगा सुद्ध नहार ॥७ टिप्पणी-(१) बिहाइपृहस्पति । सोइम-( पारसी-सोयम ) तीसरा । ४२४ (सैपदम ३०४भ बम्बइ ६४) पश्यिते सितारगान गोयद (ग्रह अवस्था कहना) उत्तिम समो सब सुख परजायहु' । पति परजा सर दूध अन्हायहु ॥१ राजा चॅदर पाट पैसारा । महत बिरस्पत सुरुज उभारा ॥२ पंद्रह पिसवा धरम जनावई । पाप पॉच पायें दिसि पावई ॥३ अठ विसमा दस अघि पखाने । पारह बिसवा मोर तोर जाने ॥४ सतरह विसवाँ कहाँ तू मानी । विसनों दोइ पाप केउ जानी ॥५