पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२७

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३१८ राज पाठ तुम्ह गोवरा अहैं, मैंना केर गुसाँइ ६ चाँदहि गगन चढ़ायहु, मैंना धरती काँइ ॥७ पाठान्तर-अम्बई प्रति- शीर्षक-वाल्ये साद नमूदने सिरजन अज रफ्तने लोरक वतने पदीमे खुद (सिरजनको लोरकरो घर वापस जानेको शुभ यडी यताना)। १-अवा समौ सभै सुस जायह। २-बिसवाँ पन्दरह धरम चुकाया ३--पाप पाँच बार्य दिसि पावा। ४-उन विसवाँ चौदह तिन साता। ५-पाउ सेउ बिसवाँ नौ पाता । ६-सोरह बिसवाँ विरुध पानी । ७-घर रिसवा दुन्दु सेउ न जानी । ८-तुम्ह लगेरक है।-मे (लिपिक पे दोपसे 'ना' छूट गया है । १०-चाँदा । ११--नारी। ४२५ (रीरेण्डस् ३०४२ : यम्पई ) पुरसीदने लोरफ (लोरकका पूछना) मैना सरद पीर' जो सुनाया । सुनतें लोर हिये घबराया ॥१ मैंना बात गाँभन कित पायहु । औ चाँदा किह आइ सुनायहु ।।२ कहु पंडित फिर कितहुत आवा' । के तुम्ह हरदीनगर पठाया ॥३ मैना नाउ कहा तुम्ह सुनौं । औ चॉदा घर' कहॉ गुना ॥४ तुं न हाई" वाँभन परदेसी । देसउँ' लखउँ आह सहदेसी ॥५ संह पाइ तोर झार चरेंहिं, आपन सीस चढ़ाउँ१६ माइ भाइ मना कर, कुसर खेम" जो पाउँ ।।७ पाटान्तर-यम्प प्रति- शीर्षक-मुनीदने औरस हाले वारये मैंना य गिरियाकर्दन मा पिराक पराये मैना (लोरमा मैनापा हाल सुनार दुःखी होना)। -विन । २-मुनों गैर हिये। ३-चाँद । ४-औ मैना में। -आबहु। ६-ती । ७-पटाय। ८-त! :-र। १०-- हासि । ११-- । १२-रेड पाद तोर वामन अपने सीन रहा। १३-संग युसर ।