पृष्ठ:चंदायन.djvu/३२९

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मोहि को कहा सिरजन, हरदी सँदेस ले जाई १६ जननि तोर औं साँवरी, परी दोड़ लै पाइ" ॥७ पाठान्तर-यम्बर प्रति- शीर्षक-वैफियते सैल्सानये गुफ्तन पोशे होरक पैगाम वेगानिये ना (लोरक्से घरकी स्थिति और मेनाका सन्देशा कहना)। १--हौं र पनिज गुर । २-टेद हँ। ३-पनहि सारा । ४- कहूँ। ५-देस तुम्ह । ६-चरे देउ मैं गोवर जाउय ७-चला। ८-कहेउँ सबद और आपन टाऊँ। ९-गर । १०-परर रारी चोमस, अहरे दयी न जाइ । ११-जननि तोर कौर साँवरि मेना, पाइ परी है धाद। टिप्पणी-(२) पतसारा-बैठक । तउले के-तोल्नेके लिए । अया-तोल्नेवाले । (६) साँवरी-पत्नी। ४२८ (रोलैण्ड्स ३.६५ : बम्बई ४३) फैपिचत रहू वही जो तुम्ह पर यह पनिज चलाउर । मैंना कहि मैं गोहन आउन ॥१ छाडि आँचर कर गहि रही । अति दुख पूरविरह के दही ॥२ खोलिन आँचर आइ छुड़ावा । कहि संदेस लोर जिहँ आया ॥३ महि देखत लैं पैठि कटारि । अस कहु आज मरउँ कंठसारी ॥४ खोलिन घर धर करत अहाँ । मैंना देसु मरन ले चहा ॥६ पनिज छाडि में लादेउँ, मैंना केर सँदेस १६ बंग आजु चलु गोवर, तोरक तजु परदेस ॥७ पाटान्तर-बम्बई प्रति- शीर्षक-बैंपियते मना गुफ्तन सिरजन मा पिरान हाल वाज नमूदन (मिरजनका मैनाँकी हालत और उसी विरह अवत्या कहला)। (१) आँचर गहिक रही। २-दुई टिम्ब न्टिन । ४- काहसि सदेस जिन पिउ आवा । ५-दलिन धरहर करते हा । -६ मरन पंचाश -गोवरौं। ८-~ोर नहु ।