पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३०

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३२१ ४२९ (रोलैण्ड्स ३०६५) कैफियते शिकन्नगीए हाले मैंना गोयद (मैना का दुख दर्द कहना) मैल चीर सिर तेल न जानइ । यह दुस लोरक तोर बखानइ ॥१ कहत संदेस न झरि पानी । घरसहि मेध जइस घर्रानी ॥२ दि सरै थाह न पावा । करिया नहीं तीर को लावा ॥३ मैंना रूप देस का देसउँ । अउर रूप सयँसार न लेखेउँ ॥४ सर एक दिन करे अहारू । किंहि पर जियइ जानि करतारू ॥५ रोयस नित कचको नैन, मैना विध' अस औतारी ६ नैन मुझि धर मांचु लोरक, तें हीउर मॉझ सुतारी ॥७ ४३० (रोटेण्ड्स ३०७ ; बम्बई १९) जारी कर्दने लेरक अज गुनीदने दुश्वारिये मैना (मैनाकी दुरवस्था सुन कर ोरकका रोना) मुनि संताप मना कर रोवा । लोरक हिये के कसमर थोपा ॥१ अब मैंना बिनु रही न जाई । देई पॅख विध जॉउँ उड़ाई १२ जो न जाइ मैना मुस देसउँ । तो यह' जीउँ मरन लै लेखउँ ॥३ देवम गयउँ निसि आइ तुलानी । बॉभन कहत न पात' घटानी ॥४ मिरजन जाइ सीस अन्हवारहि । लै अपना किहें जेंड करावहि ॥५ दाम लास दोइ देउहों, घरद सहस भराबहु ।६ मोर गबन दिन दूसर, तुम फुनि"गोहन आपहु ।।७ पाटान्तर-मई प्रति- शोक-मुनीदने शेरक हाले बेहाल्येि मेंना व गिरिया क्दन या फिराक हाल पाज नमूदन (मैनाकी दुरुस्था मुन कर लौरकमा रोना और अपनी स्थिति रहना)