पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३१

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३२२ १-हिय । २-देहु । ३-मदिर। ४-चिनु मुसजा। - । ६-योभन बात कहत न । ७-मिरजन जाद पर ये आवहु । बैं अनपान कराव।८-दोइ लीन्ह परभन । ९-दूमर । १०-पुनि । टिप्पणी-(१) वसमर-कसक । (६) दाम-तौवे का सिक्का । सिक वे इस नाम के सम्बन्ध में सामान्य धारणा रही है कि उसे पहले पहल अक्बरने प्रचलित किया था। इस कारण अमीर खुसरोके खालिस्वारीमै 'दाम' उल्लेसप प्रमाणसे अनेक विद्वानोंने उसे अस्बरवाल अथवा सरे पश्चात्नी रमना सिद्ध करनेवी चेष्टा की है। किन्तु यह नाम परते पूर्व भी प्रचलित था। इस उल्लेसरे अतिरिक्त अलाउद्दीन सिजी दिल्ली टयसाल्ने टक्साली तुर रुपे प्रन्थ 'द्रव्य परीक्षा से भी 'दाम'का पूर्व अस्तित्व प्रकट होटा है । द्रव-परीक्षापे अनुसार चाँदीका टक ६० दामरे वरावर हाता था । अगर समयम रूपयेना मूल्य ४० दाम था । लाइने अकररीसे शत होता है कि उस समय चाँदी-योनेके सिकार गावजूद राज्यका सारा हिसाय वितार दामोंम ही रमा जाता था। दो लास दामापे उपयुक्त उससे भी यह झल्यता है कि दिल्ली नुल्तानार समयम भी रेन दन और व्यवहारमें दामका ही अधिर प्रचलन था। दंउहाँ-दंगा । परद-बैल। (रीलैग्दा ३०७य . बम्बई ५५) याज आमदने लोरप समान व मुताबिकर गस्तने चाँदा अब सबरे मैना (लोरका परके भीतर भाना भौर घाँदाका मैनाकी बात सुन र परेशान होना) ममों पात जो मिरजन' कही । सुनत चाँद राहु जनु गही ॥१ पूनेउँ जइस मुस टीपत अहाँ । गयी सो जोति सीन होइ रहा ॥२ अर मुरुज अपन' घर जाइह । सिंह रासि कह गगन चढाइह ॥३ फिर लोर मंदिर मँह आगा । कहाँ चाँद चित भयउ पराना ॥४ उर्टि पानि लै पाई" पसारहि । तुम्ह जेउ" औ पीर कारहि" ॥५