पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३३

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३२४ समुंद वीर कछु साथ तुम्ह जायहु । गोबर देखि पलटि घर आपहु ॥४ फाँद सिधासन चाँद चलावा । इन्ह तजियाब किते हूँ (आवा) ॥५ घरद सहस एक सिन्धौ भरा । पाटन छाड़ि सीउ उतरा ।।५ राहु गरह जस गरहै, चाँदा मुख अँधियार १६ मीन रासि धन वैरिन, सिरजन के उपकार ॥७ मूलपाठ-(४) आये। टिप्पणी-(१) सिन्धौ-सैन्धव. नमक । ४३४ (रीलैण्टम ३..) गुफ्तने चाँदा लोरकरा (चाँदका लोरकसे अनुरोध) लबटु चाँद लोर सों कहा । पलट नीर गंगा नै बहा n? विरथि लाइ ते मो से तोरी । जहवाँ दृटि फुनि तहवाँ जोरी २ तिह नखोर हौं सरग लुकानी । के सनेह हरदी ते आनी ॥३ सिंह दिन सँवर वाच जिंह कीन्हें । अब लै गोवर महिं दीन्हे ॥४ चात देइ धनि नाउ चदाये । अब गुन काटि गाँग बहाये ॥५ बहुरि लोर चलु हरदी, रहहिं परिस दोइ चार ।६ याचा पुरवहु अपने साँई, विनवई दासि तुम्हार ॥७ टिप्पणी-(१) स्वटु-लीट चलो । ने-समान । (७) पुरवहु-परा यो । साँई- स्वामी । दिनदह-विनर करती है। ___४३५ (रीलप्टस ) जगार दादने लोरक मर चौदाग (लोरकका चादको उत्तर) हाँ जानउँ राजा के जाई । अपने हुतं तिह होत पराई ।।१ हाँ अम जानउँ बन के जाती । सेज न देसत एको राती ॥२