पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३५

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४३७ (रीलैण्ट्स ३१२) हैयत उफ्तादन दर शहरे गोवर (गोवर नगरमें भातकका फैलना) पर घर गोगरॉ परा सभारू । कहहिं आजु राखड करतारू ॥१ तलवा कोट घराये साई । परी रात मँह पॉर धाई ॥२ सोन रूप सब गॉठी करहीं । धरहि ओसारहिं धानुक धरहीं ॥३ मेना के जीउ अइस जनाए । अनौं डरहुतै भइ को आपा ॥४ जोरि लै बाट लोरक के कहा । मकु जीउ भया आनत अहा ॥५ सॉझ परे माड सोलिन, मोर चितहिं अस आइ ।६ आज रात के चीतहि, लोरक सुधि पाड ॥७ टिप्पणी--(३) गाँटी-अटी टेंट, कमरम धन राशि रखनेका स्थान । (४) अनी बातें यह अपपाठ जान परता है। बीरानेर प्रतिमें 'हरदी हुत अभइ यो आवा' पाठ है । (६) साँझ घरे--सपा बेला। ४३८ (रिदम ३१३) न्याय दीदने मैनों अज आमदने लोक (मैनाका होरकके भानेरा स्वप्न देखना) गाँन पुठारें परा अगस् । मैना के चित अंनद हुलास ॥१ सोपन फर रात जो फली । देस तरायों मैना -भूली ॥२ रहँस उठी चित मँह निसि जागी। पिछली रात नींद फिरि लागी ॥३ लागत नैन सपन एक आया । भा विहान ने गवर नसावा 18 सोलिन पूलहि मुनु पनि मना । परत साँझ जो यकतिह बना ॥५ तोर मन काल जो रहसा, पायहुँ नीके चाह ६ मपन गुन गिनु मना, कडु का देसउँ आह ॥७