पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३८

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३२९ वहि कर दूध दहि लीजइ, दस गुन दीजइ दान १६ सती रूप जस देखउँ, सिंह क निदाई पान ७ टिप्पणी-(५) पाठो-पीछे । उधावा-उठाती है । ४४३ (रोलैड्स ३१८ बम्बई ५९) खरीदने लोरख शीर व दहानीदने माल मर मैना ग (लोरकका दूध खरीद कर दरब देना) लेके दूध तो' दरस दिवाया । सीप सिंधोरा मांग भरावा ॥१ सेंदुर चन्दन सर कोउ लेई । मैना आपुन' कर न देई १२ सेंदुर सो करि जिंह पिउ होई । नॉह मोर' हरदी है सोई ॥३ जौलहि*] मुंहिका यह तजगयउ । तौलहि हम अस साध न भयउ॥४ निमि"] दिन हो दुख रोऊँ । नीह न आवड कैसे सोऊँ ॥५ रोत दिस्टि घटानी, (घटी) चस के जोत'१६ चाँद सुरुज तिह पर गहे, पास परी भुंइ लोट" ५७ मूलपाठ-६-फटी (हेके अभावरे कारण यह पाठ है)। पाठान्तर-बम्बई प्रति- शीर्षक-सितदने लोरक शीर अज मैना व माल दहानीदने व आज मूदने मैले दिल रा (कोररका मनासे दूध खरीद कर धन देना और उसरे हृदयकी थाह देना) १-लेके दहि दूध । २ानि चढावा । ३-आपहि। ४-मोर नाह। ५-जौलाहि वह तज मॅहि यह गया। ६-मुहि । ~भवा । ८---दिन दिन आँसू लोह रोऊँ। ९-खीन भर चख जोत । १०- चातु परी मुँइ टूट। टिप्पणी-(१) तो-तब | दरव-द्रव्य । दिवावा-दिलाया मीपकाठबा बना सानेदार पान जिसमे अभिनन्दन-सामग्री, यथा-रोली, चादन, मुपारी, अभव (चावल), ऐपन आदि रखा जाता है । सिधोरा-- सिन्दूर रसनेस पात्र । माग भरावा-माँगम सिन्दुर लगानेरो माँग भरना कहते है।