पृष्ठ:चंदायन.djvu/३३९

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३३० (२) -रने। (३) नाहपति। (४) जौलहि-जब तक । मुहिका-मुझसे। तौलहि-7 तक। ____ अस~ऐसा । साध-आकाक्षा 1 (६) घटानी~घट गरी । यख-नेन । ४४४ (रेण्ड्स ३.९, होपर) ऐजन (दही) लोरक मैनहिं जान' न देई । करै धमारि मरम सम लेई ।।१ मैना कहि सुन ताँहि' सँझाई । मोरे आहे मीत रजाई॥२ ते का देसु हो येसादारी । सिंह तूं मो सों करसि धमारी ॥३ जानमि अस ते सोना सारी । थाप देइ महि घालसि चोरी ॥४ अपने नॉह न रहँसु सॅझाई । मोर ठॉउ का करतु बड़ाई ॥५ कोह भर के मैना चली, तहै यहिक आवास १६ चॉदा भई पट पालंग ऊपर", धरि वैसारस पास" ॥७ पाठान्तर-होपर प्रति- शौर्षक नीज गुजास्तने रोरफ मर मैंना रा बेराजी व लारा दरियापन परदन (लोरपरा मगायो न जाने देना और छेडखानी करना) १-चरै। ---गाह । ३-अजाई । ४- 2 देने में अकिल पुग। ५-तर ते महि साँ। ६-ते सारी सोरी। -पाल्या ८~अपने मान । ९-मोर ठाँउ पुर रहि न बधाई। १०-पोह बहुत दै मना, नल भई वहि र आवाम । ११-चाँदा पट पालग मा । टिप्पणी-(1) धमार-धमा चौपडी, छेदार, दुपदग। मरम-हत्ययी बात। (३) पेमादारीयेसाहति ।