पृष्ठ:चंदायन.djvu/३४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३५ तोहि महरहिं नाऊ चलाया ! माँकर कहे अस बोल पठावा ॥४ _कहा लोर इँह देस पराना । हरदीपाटन जाइ तुलानाँ ॥५ भय बीर है यॉकर, मारि गाइ लै जाह ।६ ऐसे बीर कितह देह पाये, सँवरू राध गवाह ॥७ ४५२ (बम्बई ६ रीसैण्ड्म ३२६) सुनीदने मौकर वैफियते रपतने लोक व आमदन बालसर व कुस्तन सँवरू व बुदने माँद गाव (लोर के जानेका समाचार सुनकर मॉकरका ससैन्ध आना और सँवरूको मारकर माय ले जाना) मुनि के मौकर कटक चलाया । यहाँ कँवरुहि मारइ धाग' ॥१ बहुत कटक सेंउँ मॉकर आहा । एकसर कँवरू करि (वहि) काहा ॥२ कँवरहि नाउ हँकारह आरा । राजा कापर तिह पहिरावा ॥३ राजा पहँ तो सॅवरू आना । धरि कर मॉकर सँवरू मरावा ॥४ दइके पूत अस पहिहै भयउँ । बरु हँसि काही गोउहि गयउ ॥५ एक दुख महि तोरा, दूसर वहि कर लाग ।६ देवस रोइ के फंकरो, [रात जाइ सभ'] जाग ॥७ मूलपाट-२-दुहि (वापके स्थान पर दाल लिए जाने कारण यह पाठ है)। पाटाता-रीरेण्टम प्रति- शीर-ऐजन (बड़ी)। इस प्रतिम पक्ति ३, ४ और ५ प्रमश ५, ३ और ४ है।। १-वर माग्न आया । २-बहुल ३-सह। ४- बरू परह ह (१) काहा। बरू मार नाउत मुनाया। ६.-राजा पँह कचरू चलि आवा | U-यॉगर मार वा मरावा 12-अस दुख पृत महि वर भयउ । ९-~वादिन गोउ। १.--एक दुष्प पूत महि तोरा, दूमर पदि जो लग।