पृष्ठ:चंदायन.djvu/३५५

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३४७ मेना उसको बातोंका निरन्तर प्रतिकार करती और पर पुरुषपर दृस्टिपात न करनेका निश्चय दृढतासे प्रस्ट करती रही। इस प्रकार वारह महीने बीत गये । तब दूताने आश्र मैनासे उसरे पतिके लौट आनेकी सूचना दी। थोडे दिनों पश्चात् जा मेनाका पति घर आ गया तब उसने शृगार किया और अपने पतिके साथ आनन्द विहार करने लगी। इस बीच मैनाको कुटनी माल्निवी याद आयी और उसने उसका सिर मुडाकर कालापीला मुसकर गधेपर चढा कर नगर में घुमाया। पश्चात् उसे नदी पार निकाल बाहर किया। २-साधन कृत मैना-सतकी कुछ ऐसी प्रतिया उपलब्ध है, जिनका अन्य किसी क्यासे सम्बन्ध नहीं है। स्वतत्र रचनाये रूपम प्राप्त प्रतियाँ फारसी और नागरी दोना लिपियों में पायी जाती है। इन प्रतियो मे जो कथा है उसमें मधु-मारतीमे रुमाहित यथावे समान आरम्भ नहीं है। इनमें कथाका आरम्भ सातन कुँवर नामक नागरिक धूर्त द्वारा पतिव्रता मैनाको वशमें करने के लिए रतना मालिनको भेजनेरे प्रसगसे होता है। आगेका वर्णन लगभग दोनों रूपोम समान है। अर्थात् सातन धुंवर द्वारा भेजे जानेपर रतना मालिनने मैनाके पास जाकर अपना परिचय धायके रूपमें दिया और मैनाने उसका आदर सत्कार किया। परचात् मालिन ने उसके मलिन वेशके प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए प्रति मास कामोद्दीपक स्थितिका वणन करते हुए परपुरुषके साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए उसकाना आरम्भ किया। मैना उसकी बाताका निरन्तर प्रतिकार परती रही। बारह महीने पश्चात् मैनाने उसकी बातोंसे चिढकर उसका सिर मुंडाकर उसका मुख काला योग कराकर गदहे पर टावर निकाल बाहर किया। इस प्रकार इसमे मधु-मालतीमे समाहित अन्त याला अश भी नहीं है। मैना-सतये इस रूपमे मैंना मारिनवे वार्तालाप प्रसगसे ज्ञात होता है कि वह मेंना पतिका नाम लौरक है । उसे महरकी चाँदा नामक बेटी भगा ले गयी है अथवा उसके साथ भाग गया है। सोतके साथ पति भाग जानेपर मैना अनुभव करती है कि उसके साथ अन्याय किया गया है। फिर भी उसे दसमा मलाल नहीं है। अपनी सौतकी चेरी बनकर रहनेको तैयार है। ___मैना-सतका जो स्वतन्त्र रूप है, उसी तरहकी एक रचना पारसी में भी पायी जाती है उसे हमीदी नामक सूपरे कविने अस्मतनामा शीर्षकसे २०१६ हि० (१६०८ ई.) म जहाँगीरके शासनकाल्मे प्रभुत किया था। उसमे कथा इस प्रकार है-- १ क खन्ति प्रति मनेर शरीफ (पाना)के सानकाइमें है। उसे सैयद इसन अमवरीने 'मामिर' (पग्मा) के अक १६ और १७ में प्रकाशित किया है। एक दूसरी प्ररिने चार पृष्ट रिस आव वेल्स म्यूजियम, बम्बई और एक पृष्ट राष्ट्रीय समहालय, नई दिल्ली में है। २ दो प्रतियोको अगरचन्द नाइगने हिन्दी विद्यापीठ अथवीथिका (सन् १९५६) में और एक प्रतिको अवध भारती में और एक मनिको उदयशवर शास्त्रीने प्रकाशित किया है। एक अप्रकाशित प्रतिकी प्रतिलिपि नागरी प्रचारिणी सभा, काशी में है। ३ इसकी एक हस्तलिखित प्रति अलीगढ़ विश्वविद्यालय पुस्तकालय में है।