पृष्ठ:चंदायन.djvu/३५९

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दो खियाँ थी । एक स्त्री नीचे रहती थी और दूसरी कोठेपर रहती थी। एक दिन रातमें जब सिपाही घरपर नहीं था, एक चोर घरमे घुसा। उसने जैसे ही सीढापर पैर रखा, आवाज हुई। दोनों स्त्रियोंने मुना, समझा उनका पति सौतवे पास जा रहा है। दोनो निकल आयीं। अँधेरेमें उन्होंने चोरको ही पति समझ लिया। पल्त ऊपर वालीने उसके सरये बाल पकड लिये और ऊपर सोचने लगी। नीचेवालीने चोरको उपर जाते देखा । वह उसका पैर पकड कर अपनी ओर सौंचने लगी। इसी तरह खोंचातानी हो ही रही थी कि सिपाही यर औटा। उसने चोरको देसा और पकड लिया और पादशाहके सामने ले गया। वहाँपर चोरने बताया कि रिस तरह दो औरतोने अपना पति समझकर उसकी मरम्मत की है । सीत बहुत बुरी चीज है। वह एक म्यानमें दो तलवारकी तरह है। मैंनाने कहा-माँ-यापका जो सुख मिलना चाहिए था, वह तो मुझे मिला ही नहीं । ममुराल्मे भी कोई नहीं जो मुपदे । किरमतम जो लिया है वही होगा। अगर सूरज-चौद भी मेरे सामने आये तो वह लोरकके सामने नुच्छ हैं। तू सौतका डर दिखाती है । लाख सौत आये तो क्या हुई । चॉदा आकर भले ही लढाई वरे। मैं तो बाहर उसकी बडाइ ही करूँगी। इस प्रकार मैना और दूतीमें निरन्तर विवाद चलता रहा। दुती मेंनाको पिच लित करनेकी चष्टा करती और मैना सतीत्वम दृढ निशा प्रकट करती। दोनों अपनी अपनी बात दृष्टान्न दे देकर कहतों । इस प्रकार छ मास बीत गये और दूता मैना की डिगा न सकी । निदान हार मानकर वह राजारे पास और गयी और अपनी असमर्थता प्रकट की। राजाने उससे कहा कि तू एक बार फिर चल कर चेष्टा कर । और आधी रातको स्वय दूतीये साथ मैनाके घर पहुंचा और एक पोनेम ठिप रहा। द्वती मैना पास पिर पहुँची और बोली-तेरी ममताये कारण ही में पिर गैट आयी। और वह फिर उससे तरह तरहकी प्रलोभन भरी बातें करने लगी। पर वह मैनाको डिगा न सकी । राजाने जब देखा कि मैनाका सतीत्व आडिग है तो यह बाहर निकल आया और बोला-तू मेरी माँ है, मैं तेरा बेटा हूँ। पदचात् उसने लोरक्को बुला भेजा । चाँदाने जर मुना तो वह बहुत प्रसन्न हुई और दोनों वापस लौट आये। राजाने चाँदाका लोरक्ये साथ विवाह कर दिया । मैंना यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई और तीनों सुसपूर्वक रहने लगे। मैनाने कुटनीको सिर मुदाकर नगरसे निकाल बाहर किया।