पृष्ठ:चंदायन.djvu/३६९

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३६१ है तो वह चाहे अच्छा हो या बुरा, मुझे तनिक भी दुसनदा होगा। उसमा पता बताओ, मैं तत्ताल उसरे पास तिलक मेजती है। तर मजरीने अपने भावी पतिका पता जैसा कि उसे भाग्यसे ज्ञात हुआ था, बता दिया । मजरीने कथनानुसार पडित और नाइके साथ तिल्या सामान लेकर मजरीके मामा शिवच द्रगौरा गुजरात पहुँचे। गाँवम घुसते ही पनघटपर उ सह्देवकी दासी पानी भरती हुइ मिली। उसने उह देखते ही पूम-आप यहॉ मकान है और आप यहाँ जायगे । शिवचन्दने उसे अपने आनेगा अभिप्राय बताया। सुनकर दासी बोली-हमारे राजा भी कन्नौज पाल हैं। उनके एक (नारा ल्टका है। आप मेरे माथ चलिये, मैं लद्रवा दिसा हूँ। __ इतना बहार दासीने घडा उठा लिया और गढपी और चल पडी । जाकर राजासे बोली-कुँवर जीरे लिए मैं एक तिल्कहार लिया लायी है। ये पूरे सूबेदार है। उनके यहाँ अपनी मर्यादा स्थापित कीजिये। राजाने तत्काल लगाके स्वागतकी व्यवस्थाकी । पडित आदि तो जाकर बैठ गये लेकिन शिवचद सड़े ही सड़े चारों ओर देसने और अपनी माजीकी बतायो बातोंका विवेचन करने लगे। यह देखकर पडितने कहा-देस क्या रहे हैं, आकर बैठिये । आप जैसा घर खोज रहे थे, वैसा ही तो मिल रहा है। भिवादने उत्तर दिया--जब तक मैं लडका नहीं देख लूँगा और वह मुझे पसन्द नहा आ जायेगा, तब तक मैं राजाचे दरवाजेपर नही हैगा इतना सुनकर राजा सहदेवने कुँवर महादेवको बुला भेजा। उसे देखते ही दुवरी पडित बहुत प्रसन्न हुए और बोले-मजरीका भाग्य ध य है। जैसा लडका आप सोज रहे थे वैसा ही मिल गया। ____यह सुनकर शिवच द धीरेसे बोले- सब बात तोल्डमे अन्टी है, लेकिन उसके दाहिनी ऑगसमें पूरी पड़ी है और यह बाएँ पैरसे गला है। चलिये यहाँसे । इसपर राजा सहदेव पीझ उठे और शिवच दको गढसे बाहर निकलवा दिया और धनुवा दुसाधको बुलार हुक्म दिया कि सारे गाँव में ढिंढोरा पीट आये कि कोई गाँववाला इन रिल्यहारोंवो बूबेका घर न बताये। जो बचेका घर बतायेगा, उसकी पाहमें भूसा भरा दिया जायेगा। गढ़से निकाले जानेपर शिवचन्दने दूसरे रास्तेसे गाँधमे प्रवेश दिया । कुछ दूर जानेपर रह गुल्ली सेल्ता हुआ एक रुइसा मिला। वे उसके निकट नाकर पड़ हो गये और उसे पाच मिठाइ देकर कहा-हम वेशा घर बता दो। रहयेने उत्तर दिया-सहदेवने गाँवमें टिंदोग पिग्वाया है, अगर उसे माम हो गया कि मैंने आपको पूरा घर बता दिया है तो वह मेरी साल्में भूसा भरवा देगा। लेकिन मैंने आपकी मिटाई ली है, इसलिए मै आपको यनसे उनका घर बता दूंगा। मै गुल्लीको चापा मारता हूँ, गुल्लीको बढाता बढाता ने दरवाजे तक