पृष्ठ:चंदायन.djvu/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गयी। लोगेके हर्षका पारावार न रहा । तोरीको अपनी पत्नीकी उपेक्षा करने और रखैलरे साथ सुखपूर्वक रहनेपर कापी स्ताड सुननी पड़ी। अन्ततोगत्वा व्यवस्था ऐसी हुई कि लेरीको अपनी रखैल छोडनी न होगी। ____ इस बीच लोरीने मतीजेने जर अपनी चाचीके दुराचारकी बात सुनी तो वह बडा निगडा और लोरीसे लइनेकी तैयारी की। घरपर एक और सतमैना न पाकर वह और मी मुद्ध हुआ और उसने रीपर आनमण कर दिया । बहुत देरतक लडाई होती रही । लोरी परास्त हो गया और अपना जीवन खोने ही वाला था कि लुर्की और सतमैना भागी हुई वहाँ पहुँची और वास्तविकता प्रकट की। ल्डाई तत्क्षण बन्द हो गयी। लोरी अपनी प्रजापर न्यायपूर्वक शासन करने लगा। उसने कृषिको इतना प्रोत्साहन दिया कि रजौलीके आस पासने जगलेको भी उपजाऊ भूमि बना दिया । पलत पशु-पक्षियों, कीड़े मकोडोंके रहने योग्य कोई जगह ही नहीं रही। सभी पशु पक्षी और दीड़े मकोड़ोंने इन्द्रसे जाकर लोरीकी शिकायत की। लोरीको अपनी प्रजापर न्यायपूर्वक शासन करते देख इन्द्रो लगा कि उसे हानि पहुँचाना उनकी शक्तिसे बाहर है । जबतक वह कोई दुष्कर्म न करे, उसको हानि पहुँचाना सम्भव नहीं है । अत उन्होंने दुर्गासे सलाह ली । लेरीको पापरत करनेके लिए दुर्गाने चन्दैनका रूप धारण किया और जिस तरह चदैन नित्य भोजन ले जाती थी, भोजन लेकर लोरीपे पास पहुँची । रोरीको इस मायाजाल्या कुछ ज्ञान न था। उसने देखा कि आज तो चन्दैन नित्यसे अधिक सुन्दरी लग रही है, वह उसके सौन्दर्यपर विमोहित हो गया 1 भोजन छोडकर उसे आलिंगन करने बढा । उसने शरीर हुआ ही या कि दुर्गाने उसे पथभ्रष्ट जानकर कसकर एक तमाचा दिया, जिससे उसका सिर घूम गया। दुर्गा तत्काल अन्तान हो गयौं। लोरीयो यह देखकर अत्यन्त लजा आयी और खेद हुआ। उसने फाशी जाकर मरनेका निश्चय किया। उसके सगे सम्बन्धी मी मोहवश उसके साथ गये । वहाँ वे सभी निद्राभूत हो मणिकर्णिका घाटपर पत्थर बने पडे हैं। मिर्जापुरी रूप मिर्जापुर जिले (उत्तर प्रदेश) में प्रचलित रोरिक और चन्दावी फ्याका रूप जे सी फील्डने कलकत्ता रिव्यमे प्रकाशित किया था, उसे रखनऊये दैनिक पायोनियरने अपने १३ मार्च १८८८ के अकमें उद्धृत किया है। उसके अनुसार यह कथा इस प्रकार है- गगाके दक्सिनी किनारेपर स्थित पिपरीकोटका राजा चेरा जातिका मारा दुर्गाराय या । गगावे उत्तरी किनारेपर पिपरीसे २०३० मील दूर गौरा नामक एक दूसरा कोट था। वहाँ अहीर जाठिका गरिक नामक एक वीर रहता था। दोनों परस्पर घनिष्ठ मित्र थे।