पृष्ठ:चंदायन.djvu/४८२

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मुओंको स्पष्ट शब्दोंमें बिना मेरी अनुमति माइनोफिल्म देने तमा उसरे सम्पादन प्रकाशनको अनुमति देनेसे इनकार कर दिया था। फिर बोले~~यह गन्य हमारे यहाँ इतने दिनोंसे था। हमें उसके सम्बन्ध तनिक भी जानपरी न थी । आपने उसे ढूंढा, खोज निकाला, उसका महत्व बताया। यह भापती महत्त्वपूर्ण खोज है, इसपर आपदा अधिकार है। इन्हें माइनोपित्म इस प्रकार अंग्रेजी चरित्र-बल्यो दृढताचे कारण इन मिनॉकी साहित्यिक टायेजनीकी चेष्टा सपल होते होते रह गयी और मैं तुरता एटता यच गया । साथ ही यह भी स्वीकार करने में हानि नहीं कि इस टावेजनीरा प्रयास मेरी अपनी ही भूगता पारण सम्भव हुआ। दूधका जला मठा पंरपर पीता है। यम्बई प्रतिपर किये गये अमपर जो बीता या, उससे राज्य होपर अन्य सम्पादन कार्यकी समातिए मैंने रोलेष्ट्स प्रति सम्बन्धी जानकारी अपने और अपने कुछ विश्वास जनोतर ही सीमित रखनेवा प्रयत्न किया था। पिर मी पुर लेगेको इतनी गन्ध तो मिल ही गयी कि यूरोप पिसी पुस्तकालयसे 'चन्दायन की कोई प्रति मेरे हाथ लगी है। यह गन्ध पाते ही साहित्यिक प्रन्यों के एक प्रख्यात और कुशल सम्पादकने पनेसासूस करत प्रविता सून मानवी चेटा की। साल होनेपर ८ पनी सम्पादन योग्रवादी दुहाई देते हुए कहताया कि मैं इस प्रारको उन्हें सम्पदन परने लिए देहूँ, ये उसमा अधिर योग्यतापूर्वर समादन कर सकेंगे। मैंने स्पष्ट 'ना' पर दिया । भने समदा यात सतम हो गयी। ज्य अन्यका सम्पादन कार्य समात हो गया चार पाण्डुलिपि प्रकाराकर हायमें चली गयी व्य, सोचकर कि सतरा दूर हो गया अय इस प्रतिफे रोकी रोगय पहानी लोगेवो पता देनमें पोर हानि नदी, मन रद कहानी धर्मयुगमे मवाशनार्य भेज दिया । इस प्रकाशित होते ही रोग उस प्रतिको प्राप्त करने लिए दोट पड़े। साहित्य क्षेत्रमं इस प्रसारको मनोवृत्ति अत्यन्त खेदनना है। इससे अधिक क्या है ! आगरा संस्करण सात दिनों से विश्वनाथ प्रमाद और माताप्रमाद गुप्त सम्पादित चन्दा- यनये पदयालाल मुरी हिन्दी तथा मापा विद्यापोट, आगरा विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित किये जानेको पात मुनी जा रही थी। पर न बने दिन कारणेगे सपा प्रकाशन सा रहा । सबद इस बीच प्रसारित हो गया । चन्दायनका यह सस्करण अपने बापम छद्भुत है। इसका विचित्रता इस बाट है कि पुस्तरपे स्पष्ट दो मप्र हैं। पहले Gटम विश्वनाथ प्रसादने चन्दायन शोको सम्बई प्रतिया और दूसरे