पृष्ठ:चंदायन.djvu/४८३

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पण्डम लोरकहा नामसे माताप्रसाद गुप्तने काशी, मनेर और पजार प्रतियोंका पाठ उपस्थित दिया है। विश्वनाथप्रसादने बमई प्रति व्यक्तिमम पृटोको नमबद्ध करनेकी चेष्टा की आवश्यकता नहीं समझी। माताप्रसाद गुप्तने काशीवाले पूर्शको आरम्भका, मनेर प्रतिको मध्यका और पजाब पृष्ठको अन्तका मानकर उसी क्रमसे उनका पाठ उपस्थित कर दिया। पहले खडके आरम्भमें एक प्रस्तावना है और दूसरे स्पष्टये प्रारम्भमें एक भूमिका दी गयी है। इस प्रकार दोनो लण्ड एक दूसरे से इतने स्वतन्त्र है कि उन्हें एक जिल्दम बँधे दो स्वतन्त्र सस्करण वहना उचित होगा। इसको देवकर मेरी स्वाभाविक मानवीय दुल्ताए उभर आयीं । मुझे विवाद और हर्य दोनों ही हुआ। विषाद इस कारण हुआ कि मुद्रा कार्यकी मन्द गतितावे कारण पाठकों के सम्मुस चन्दायनको सर्वप्रथम प्रस्तुत करनेवा श्रेय मुझसे छिन गया । किन्तु यह विपाद क्षणिक ही था । उसने हर्षका रूप यह देखकर धारण कर लिया कि इस पराशनसे पाठकोंको मेरे सम्पादन कायवे अमनो औरनेका माप दण्ड प्राप्त हुआ है। आगरा सस्करणके दोनो ही विद्वान् सम्पादकोंको चन्दायनके जिन प्रतिषोंने पोटो उपलब्ध रहे है, उन प्रतियोंदे पोटो मुझे भी सुल्म थे। दोनोको उनके पोटोन केवल एक सूत्रसे प्राप्त हुए वरन् उनरे प्रिफ्टम भी एक ही नेगेटिवोसे तैयार किये गये थे । इस प्रकार कोई यह नहीं कह सकता कि विभिन्न प्रकारकी प्रसियों से प्रस्तुत सस्करण और आगरा सस्करण तैयार किये गये हैं । जहाँतर अम्बई, मनेर, काशी और पजाब प्रतियोका सम्बन्ध है, दोनों ही सरकरण स्वाभाविक रूपसे एक ही प्रतिके दो स्वतन्त्र पात्र हैं। इन दोनों पार्टी में क्तिमा वैषम्य है यह पाटोंकी तुलना करपे सुगमतासे जाना जा सकता है। सुविधाकी दृष्टि से उदाहरण स्वरूप कुछ पचियाँ यहाँ उद्धृत की जा रही है- आगरा संस्करण प्रस्तुत संस्करण जान विरह मिस धुदका परा । (पृ. ४०) जान परहि मसि सुंदका घरा ॥ ८.११ मुरा क सोहाग भयो मनको । मुखक सोहाग भयउ तिल सगू। पदम चिमासन यैर भजन को (पृ. ४०) पदम पुहुप सिर पेट भुजंगू॥ ८५१२ तिर पिरदिन धन को सी। तिल विरहें पन घुषची जरी। माघ फार आधे रत भरी ॥ पृ. ४०) आधी कार आधी रत फरी।। ८५४४ राजा के के सुनहि निभाई। (पृ. ४०) राजा गिय के सुनह निगई ।। ८धार लिही सराहन ततसो गोरी। देउ सराहहि पैसा गोरी । के अपहर के सीन्द अजोरी ४१) गिय उचार गद रिमसि जारी ।। ८६६३ असकै मनसा भाहि न काम् (पृ० ४१) अम गिय मनुमहि दोग न काहू ।।८६०