पृष्ठ:चंदायन.djvu/४८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

है सराप राजाकर सीस के अंकवारि । हिये सिरान राजार सुनति कण्ड (पृ० ४१) अयारि ।। ८६६ दई पीत जिउ घर मंचारा । (पृ० ४३) दई विपति जिउभर संचारा 11 १८२१३ हेहु छि त्यों जो अहा, हौं पसगा देवहि पछि त् जो आहा, ही सगा विसहार । (पृ० ४३) विसभार ॥ १८रा क्षपना देस मुद्रिका भली । (पृ. ४) उपना देस मंदिर गा भरी ॥ १६११३ दौर जिनहि विमारि । (पृ० ४५) दौरा जीभ पसारि ॥ १२११७ परन्ह केहि तर यह गिन पाता। पतरिहें कहें तुरें बन पाता ।। १६॥ (पृ० ४५) (पण्ड २) चन्द्र भलात धरा जनु लाए । दर लिटार धरा जनुलाई ॥ (पृ० ११) जेहि नग बैठे अतिय मुहाए। चमक यतीसी अतइ सुहाई।। १४६।२ ताती राति यिवाई हस्ति चदा तानी गत पिछोरी, हलि चढ़ा दिसाउ, दुख भानि। घरेसि पार मलोनी तब जियहि स्टारि कस सर पाग सलोने, तिरिछि कटार महानि ॥ (पृ० १२) सुहाउ॥१४६८ मेल बुद्धि कइ आइ जनाचा । (पृ०१६) मेरि यरह के आपु जनाथा ॥ २९॥५ कार दाटक गरिक चाली। (पृ. १७) कार संग पहिर के चाले ॥ २९४१ मुनु सम्वि माहि मानुसार कर याता। वहीं सखी माह मास के बाता। अइसइ रंग सहि धनि राता (पृ० ४७) करसि रॉग सभै धनि रातः ॥५४॥१ इस पाट वैपन्ययो देसवर पदाचित् विधीफे लिए भी यह स्वीकार करना सम्भव न होगा कि ये सवरण किसी एक ही प्रति अथवा प्रति परम्परा पाठ प्रस्तुत करते है और उनमें किसी प्रकारका पाठ-सम्बन्ध है अथवा हो सकता है। इस तथ्य प्रकाराम विचारणीय हो जाता है कि क्या इस दगरे अन्यों थी और नागरी प्रतियों साथ उनकी पारसी प्रतियोगी किसी प्रकारचे प्रति-परम्परा अथवा पाठ- सम्बन्ध होनेका आग्रह पिया जा सकता है ! जो भी हो, आगरा सस्करण प्रकाशनने पारसी लिपिम अस्ति हिन्दी मन्योंकी दुर्योधता सिद्ध पर मेरा बहुत बडा भार हल्का कर दिया। उसप प्रकाशमें अब जब पाठप प्रस्तुत सस्वरणको देगेंगे वो वे मेरी पटिनाक्ष्यों को पहलेवी अपेक्षा अधिक महानुभूदिये माय गमक्ष और मराह मांगे। शब्द-शोध मेरा पाठ सभा निदोर है ऐमा मेरा दावा नहीं है । मुझे स्वयं अपने पार्टीने