पृष्ठ:चंदायन.djvu/४८८

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है। इठका 'धागड' पाठ भी सम्भव है। धागडया उस विद्यापतिने अपनी कीर्तिलताम इस प्रकार किया है-- भरु धागड़ कटवहिं एटक बढ़ जे दिमि धादेज थि। त दिति फेरी रायघर तरणि हट्ट विकाधि ॥ माबर एक एक तन्हिका हाथ। धराए कोथराए वेटल माय || अर्थात् ये धागड जाविप सैनिक बडे ल्टर (भूत) है। वे जिस दिशाम पाडा मारते है, वहाँ राज घरानेची तरुणियाँ हाटामै विक्ने लगती हैं। वे हायमें एक साबर लिए और चिथड गुदड़ पहने रहते हैं। यदि उपर्युत्त पाठ और अयं टीव हे तो कहना उचित होगा कि धागड किसी वन वासिनी अथवा निम्न वर्गको सनिक जातिका नाम है। वर्ण रत्नापरमें भाहल नामक जातिका उल्लेख है, उसे वहाँ मन्दजातिय पहा गया है। पलाने (४२।५) इसे हमने मूल्त पिलाने पदा था (पृ० १०३) और उसका अर्थ पील अर्थात् हाथी रिया था । वलुत उचित पाट पलने' होगा जिसका अर्थ है-जीन पसे हुए। फीनस एक दरव भरि आये (४१)-इस पदका हमने एक दूसरा सन्दिग्ध पाठ भी टिप्पणी रूपम दिया है (पृ. १०५)। उस समय में इसका अर्थ स्पर नहीं हुआ था। पीछे पीनस शब्दपर विचार रनेपर ज्ञात हुआ कि पद पानस या रूप है सिरा अर्थ पालकी है, और तर समझम आया कि हमने पाठ टीम हो दिया है । टिप्पणीम दिया गया पाट अनावश्यक है। मध्यकाल्में बडी मानामें धन (द्रव्य-दरय) पाल्पीमें भरकर भेजा जाया करता था। फ्नक (४।६, १५५१६, ३७२१७) इसका अर्थ दमने एक स्थानपर आय (पृ० १०५) और दूसरे स्थानपर गेहूँ (१० २९.) किया है। आटा अर्थ हमने कभी कहीं मुना था और उसी आधारपर यह अर्थ दिया था। पश्चात् वासुदेवशरण अपवारने हमें बताया कि गेहूँ को नफ रहते हैं। पजामें गेहुँदै अर्थम कनक का प्रयोग होता है । वदनुसार हमने दूसरी जगह गेहूँ भर्य ग्रहण किया। अभी हाल्म पालचन्द जेनने गेहूँ अयं देखकर आश्चर्य प्रसर रिया और बताया कि बुन्देल गट प्रदेशमें आटा को कनक कहते है। निरर्प यह कि गेहूँ और आटा दोनों ही अोंमें कनक का प्रयोग होता है। क्सर ४८ में पारमी अनुगदवी जो पचिश उद्धृत यो गया है उगम पनि २ मे जह पै स्थानपर बह और पति ४ में चॅरिप स्थान से होना चाहिये। ८०६ की टिप्पणीम वरण ये स्थानपर वारण होना चाहिये। पृष्ठ १९, पत्ति में वरदाका जो उ7 है, उसरा गन्दर्भ एट या है। वह इन प्रसार हैर ३ (१९५९) 97 २६-३३ ।