पृष्ठ:चंदायन.djvu/४९४

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इससे भी प्रकट होता है कि सतरहयों शतीचे आरम्भमै चन्दायनकी कथा __ लोक प्रिय यो। वैयक्तिक स्पष्टीकरण ग्रन्थम सर्वत्र मैंने विद्वानों का उल्लेस सीधे सीधे नाम लेकर किया है अर्थात् उनके नाम आगे पीछे श्री, डाक्टर आदि सीग घूछोंका प्रयोग नहीं किया है। मेरा यह कार्य पाश्चात्यानुकरण है। वहॉ ग्रन्थों मे विद्वानो विचार आदिका उल्लेख करते समय मिना क्सिी औपचारिकताके देवल नाम रिसा आता है। हम भी तुल्सी, सूरदास आदि मनीपयोंये नामके साथ यही करते आ रहे हैं। उसी परम्परामे मेरा यह ध्यवहार भी है । पाठक इसे मेरी धृष्टता और अविनयन समझनेसी भूल न कर पैठ, इसलिए इस स्पष्टीकरणकी आवश्यकता हुई। परमेश्वरीलाल गुप्त पटना सग्रहालय पटना-१ विजयाददामी, सन् १९६३ ई० IDment ACM TV