पृष्ठ:चंदायन.djvu/५१

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१-११, ११ भानाएँ- देहु असीस रोचन, मार गोठ घर आउँ। सोने वेदि गदाइ, मोतिह मांग भराउँ॥ १२३ (२) ११, १२ मानाएँ- जे क्य आय समान, सरयस बरन के तेहि । और पॉखि जे मारे, ताकर नाउ को लेहि ॥ १५४ (३) १२, ११ मात्राएँ- सिद् पुरुष गुन आगर, देखि लुभाने टाउँ । कहत सुनत अस जानें, दुनि चल देख जाउँ । २० (४) १३, ११ मानाएँ- अरय दरय घोर औहट, गिनत न आवइ काउ। अन धन पाट पटोर भल, कौतुक भूला राउ ॥ ३२ (५) १६, ११ मानाएँ- खाँट चिरोजी दास खुरहुरी, यठे लोग बिसाह । हीर पटोर सौं भल कापद, जित चाहे सव आह ॥ २८ (६) १६, १२ मानाएँ- गीत नाद सुर कवित कहानी, कया पहु गावनहार । मोर मन रैन देवस सुख राख, असि गाँध गितहार ॥ ७२ (७) १७, ११ माताएँ-- तिल संजोग याजिर सर कीन्हों, आहट भा परजाइ । राजा हिये आग पद जारे, तिल-तिल जरे बुझाइ ॥ ८५ इन व्यवस्थित मात्राओंवाले पत्ताके अतिरिक्त कुछ धत्ता ऐसे भी हैं जिनके चारों चरणों की मात्राओंमें भिन्नता है । यथा- ११, १२, १२, ११ माताएँ- महम कर सुरजकै, रहे चाँदा चित छाइ । सोरह कहाँ चाँद के, भई अमावस जाइ ॥ १४७ इस प्रकार माता-भेदसे युक्त पत्ताके अनेक रूप चन्दायनमें देसे जा सकते हैं जिनमें चरणोंकी मात्राओमे परस्पर कोई साम्य नहीं है; पर उनका उल्लेख यहाँ जान- वृक्षर नहीं किया जा रहा है। उनपर अन्यको एक-आध अन्य प्रतियों के प्राप्त होने और उनके तुलनात्मक अध्ययन के पश्चात् ही विचार करना उचित होगा। जो सामग्री उपलब्ध है, उससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि चन्दायनमें