पृष्ठ:चंदायन.djvu/५२

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१३, ११ मानावाले पत्ताका, जिसे दोहा भी कहा जा सकता है, बहुत ही कम प्रयोग हुआ है। उसमे १२, ११ और १६, ११ मात्राबाले पत्ता प्रमुख है और अधिक मानामें मिलते है। रचना-व्यवस्था मुसलमान कवियों द्वारा रचित हिन्दी प्रेम गाथा काव्यों सम्बधम रामचन्द्र शुकने इस बातकी ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि इनकी रचना बिल्कुल भारतीय चरितकाव्योकी सर्ग-बद्ध शैलीपर न होकर फारसी मसनवियोके ढगपर हुई है, जिनमें कथा सर्गोया अध्यायोमें निस्तारके हिसावसे विभक्त नहीं होती, घराबर चली चलती है, केवल स्थान-स्थानपर घटनाओ या प्रसंगोका उल्लेख शीर्पक रूपमें रहता है। मसनवीके लिए साहित्यिक नियम तो केवल इतना ही समझा जाता है कि सारा काव्य एक ही मसनवी छन्दमें हो पर परम्परा- के अनुसार उसमे क्थारम्भके पहले ईश्वर स्तुति, पैगम्बरकी वन्दना और उस समयके राजा (शाहेवक्त ) की प्रशसा होनी चाहिए। ये बातें पद्मावत, इन्द्रावत, मिरगावती इत्यादि सबमें पायी जाती है। तुओं मसनषियोंके सम्बन्ध गिच्चका कथन है कि मसनवीका आरम्भ अल्लाहकी वन्दनासे होता है । तदनन्तर उसमें रमूलकी वन्दना होती है और उनके मेराजका उल्लेस रहता है। पश्चात् समसामयिक शासक अथवा किसी अन्य महान व्यक्तिकी स्तुति की जाती है। और फिर पुस्तके लिसनेके कारणपर भी प्रकाश डाला जाता है। लगभग यही राते पारसी मसनवियाम भी पायी जाती हैं। निजामीने अपने लैला मजनूम हम्द शीपक्मे ईश्वरका गुणनगान किया है और फिर नातरे अन्तर्गर रसूलपी प्रशसा है और उनक मेराजका उल्लेस है। तदनन्तर कविने पुस्तक लिसके कारणपर प्रकाश डाला है और अपने पीरकी चर्चा की है। अन्तमे अपने पुत्रको नसीहत दी है। खुशरो-शा में भी निजामीने क्रमा ईश्वरकी प्रशसा, रमूलकी नात, शाहेवत्त को दुआ और पुस्तक लिसनेका कारण दिया है। इसी प्रकार अमीर खुसरोने भी खुदाची तारीफ, रसूलकी नात, मेराज बयान, शेख निजामुद्दीन गुणगान, शाहेवक्त-अलाउद्दीन खिलजीकी प्रशसा कर तथा पुस्तक लिखनेका कारण बताकर अपनी पुस्तक मजनूं-लैलावा आरम्भ किया है। खुसरोके शीरी फरहादमे भी यही बाते पायी जाती हैं | जामीने युसुफ जुलेखा और फैजीने नल दमनका भी आरम्भ इसी प्रकार किया है। फिरदौसीर शाहनामेंमें भी ये सभी गातें उपलब्ध है। मुसलमान कवियों द्वारा रचित हिन्दी प्रेमाख्यानर कायों का भी प्रारम्भ उपर्युक्त ममनवियारे समान ही हुआ है । दाउदने चन्दायनम इश्वर ओर पैगम्पर की वन्दनावर चार यारोंका उल्लेख किया है, फिर शाहेवक्तपीरोजशाह तुगल्यथी प्रशसावर अपने गुरुकी वदनाकी है और अपने आश्रयदाताका वर्णनकर ग्रन्थ रचनावे