पृष्ठ:चंदायन.djvu/६०

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४८ भाते देख ठिठक गया । लोरक्ते बोला कि तुमने यह बहुत बुरा किया। और वह उसको भत्सना करने लगा। यह सुनकर चाँदने क्वरूको समझानेकी चेष्टा की तो कॅबरू उसकी भी भत्र्सना वरने लगा। अन्तम लोरकने यह कहकर वस्ने विदा ली कि वातिक मासतक जैट आऊँगा । (२९४३००) ३७-वहाँस दोनो तेजी साथ आगे बढ़े। जब शाम हुई तो गगा घाटको पटिन समझर पेडरे नीचे सो रहे । सुबह दोनो पाटरे किनारे आये। (बीचके कवक अप्राप्य है, अत स्थावा प्रम छ अस्पष्ट है ।) लोरर एक ओर छिप गया और चौद तटपर खडी होकर अपना प्रदशन करने लगी। उसे देखते ही एक महाह निकट आया। चाँदको अकेले देस उसकी उत्सुकता जागी और नाव रेकर उसके पास आया। चौदके रूपको देखते ही वह उसपर मुग्ध हो गया और उसे नापर बैठाकर पार ले चला। गगा बीचमे विटने उससे पूछा कि तुम कोन हो ! पर वहाँ है । नदी आसपास कोई गाँव नहीं है, पिर तुम रावको कहाँ टहरी थीं। चाँदने कहा-मैं घरसे रूकर चली हूँ और रातभर चलकर अग्लो हो यहाँतक आयी हूँ। यह पाते हो हो रही थी कि लरकने पानीमसे सर बाहर निकाला और केवट- को पानीमे ढवेल्कर स्वय नावपर सवार होकर चाँदवो रेकर चल पडा । (३०१ ३०७) ३८-इवनेमे पावन आ पहुँचा और वटसे पूछने लगा-इस रास्ते मेरे दो दास-दासी आये है उन्हें नुमने देखा है। यह सुनकर वेवट हसा और बोला-यहाँ तो एक कुँवर और कुंवरी आये थे। पुरुप छिप गया और सी दिखायी पडी। उसकी ओर आकृष्ट होकर मैं यहाँ आया। वे लोग नाव लेकर उस पार गये हैं। लेकिन ये तुम्हारे दास-दासी नहीं हो सकते। इतना सुनते ही रावन पानी द पडा और रकका पीछा किया । जबतक पावनने नदी पार करे तबतक लोरक छ कोस ज पहुँचा। बावनने दौडक्र उनका पीम किया और दस कोसपर उन्हें जा पडा। तोरकपर उसने तीन पाण चलाये पर वे तीनों ही वेकार गये। तर हार मानकर लोरकसे कहकर कि यह स्त्री तुम्हारी हुई, यावन अपने घर लेट गया । (३०८-३१५) १९-यावन गोवरकी ओर गया, लेरक और चाँद आगे पटे। रास्तेमे उन्हें विद्यादानी नामक एक ठग मिला जिसने दान बहाने स्त्री (नांद) की मांग की। इसपर लारक्ने उसरे हाथ और कान काट लिये और उसका मुंह काला कर देशमें बेल बाँधकर छोड दिया । (कुछ कडवको प्राप्त न होनेसे यह पटना बहुत अस्पष्ट है।) (३१६-३२२) ४०-विद्याने जाकर लोरक्के विरुद्ध राव करकासे परिवाद किया। राक्ने अपने मन्त्रियांसे परामर्श कर होरक्यो बुलानेके लिए प्राणीको भेजा। लोरकने आकर रावसे सारी यात वह मुनायो । मुनकर रावने उसे घोडा आदि देकर सम्मानित किया और कहा कि चाहो तो यहाँ रहो अन्यथा न्हाँ इच्छा हो जा सकते हो। लोरक रावसे विदा लेकर चला और एक ब्राह्मण पर आकर टहरा । वहाँ तरफ