पृष्ठ:चंदायन.djvu/६१

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और चाँद दोनों फूलेका सेज विछाकर सोये । रातमें मुग धसे आकृष्ट होकर एक हॉप आया और चाँदको काट लिया । (३२३ ३३२) ४१--साँपने उँसते ही चाँद वेहोश हो गयी। लरक सात दिनोंतर शोनाकुल होकर विन्यप करता रहा। तब एक दिन एक गुनी आया और उसने मन पदा और चाँद जीवित हो उटी । पिरचे दोनों हरदीवी और चले । (३३३ ३३७) ४२-(३३८ से ३४३ वे बीच केवल दो कडक उपलब्ध हैं जिनसे वास्तविक घटनाका अनुमान नहीं होता, केवल इतना ही पता लगता है कि लोरकको कोई युद्ध करना पड़ा था। उसने शत्रुओंको मार भगाया। पश्चात् दोनों पुन हरदा की ओर चले।) ४३-चलते चलते एक वनसण्डये चीच शाम हो गयी और ये दोनों एक पाकहरे पेडरे नीचे रुक गये और सा-पीकर सो रहे । रातमै पुन साँपने चॉदको दस लिया। उसके पियोगमें लोरक घोर विलप करने लगा। दिन बीता, रात हुइ और वह रोता ही रहा । दूसरे दिन सुबह लोरपने चिता तैयार की और उसपर चॉदयो सेकर बैठ गया । इतने में एक गुनी आया। उसे देखकर औरक उसक पाँवपर गिर पग उसने उससे चाँदको जीवित कर देनेका अनुरोध क्यिा और अपना सर्वस्व देनेनो पदा । गुनीने लयको आश्वस्त किया और मात्र पढकर पानी छिडका 1 तत्काल चाँद- का विष उतर गया और वह उठ बैटी। लोरखने सारे आभूषण उतारवर गुनीरो दे दिये । (३४५-३६०) ४४-गारुडी, जाते हुए चाँद और लोरकसे कहता गया कि पारन देश मत जाना और जाना तो दाहिने रास्तेको अपनाना । लेकिन उन्होंने उसकी बात न मानी और चल पड़े। शाम होते होते ये सारगपुर पहुँचे । यहाँ रपे साथ क्या बीती यह व्यक्त करनेवाले कडवक हमें उपलब्ध नहीं हैं। कि तु रावत सारस्वतने जो कयासार दिया है उसके अनुसार सारगपुर पहुँच पर लोरपने वहाके राजा महीपतिके साय जुआ खेला। (जुएका वृतात प्राप्त नहीं है पर लोक क्याके अनुसार लोष अपना सब कुछ हार गया और अतमें चाँदको भी दाँवपर लगा दिया और उसे भी हार गया । तब चॉदने अपनी चातुरीसे उह पुन एक बार खेलनेको कहा और महापतिको अपने सौदय प्रति ऐसा आकृष्ट कर लिया कि वह सेल की ओर समुचित ध्यान न दे सका और हार गया ।) पश्चात महीपतिको लोरकने मार डाला । महीपतिः मरने पर उसने भाइ असिपतिने उसे घेर लिया। रावत सारस्वतके दिये हुए कथासारय अनुसार राक्षसी मायासे लोरक्को दिसाई देना बद हो गया। तब चाँदने वीरतापूर्वक सबको मार डाला । (३६१ ३७०) ४५--महीपति और असिपतिको पराजित कर चाँद और लोरक आगे चले तो सम्भवत चाँदको पुन एक बार मॉपने काटा और वह मरकर पुन जीचित हो स्टी। (यह अश अनुपलब्ध है। उपलब्ध कडवक ३७० से इस घटना घटित होनेका अनु मान मात्र होता है ।) ज्य यह जीरित होकर उठी तो बोली कि ऐसी छोइ कि क्या