पृष्ठ:चंदायन.djvu/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६४
 

मेरक चौदवा हरदीपाटनमे सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करना आत्मा और परमात्मा एक्कार हो जानेकी चरम परिणतिका रूपक कहा जा सकता है। पर उस स्थितिम पहुँच पर भी रक चॉदमे अपनेको आत्मसात नहीं कर देता । मेंना और परिवार अन्य लोगोंके लिए उसकी व्याकुलता बनी रहती है। पनाके पश्चात् ऐसी स्थिति सूपी अध्यात्मवादमे कल्पनातीत है। अतः सूरज और चाँद नाम होते हुए भी काव्यर नायक नायिकामे आत्मा- परमात्माका सूफ्यिाना रूप नर्हा झल्कता। लेरक मैंना वाले युग्मदे प्रेम-भावमें भारतीय नारीकी पातिव्रत्य भावना निहित है । पति रूपमें लोक उसे छोड़ कर भाग जाता है, मैना उसके लिए बिसरती रहती है। यहाँ भी रूपकको दृष्टिसे आत्मा (नर ) का परमात्मा (नारी ) के प्रति कोई आकर्षक नहीं है, जो सूपी साधनाका मूल तत्व है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दाऊदये सम्मुस काव्य रचनाये समय कोई सूपी दर्शन नहीं था, लोक्प्रचरित क्थाको काव्य रूप में उपस्थित करना ही अभीट था । लोकप्रियता सूपी साधनाका रूपक न होनेपर भी चन्दायनने सूपी साधकोंको अपनी ओर आकृष्ट किया था। दिल्ली शेस बदरुद्दीन वायज रब्बानी अपने धार्मिक प्रवचनोम इस काव्यका पाठ किया करते थे। उनका मत था कि इसमें प्रेम और भत्तिकी जिज्ञासाकी पूर्ति है और धार्मिक तत्व निहित है। लगता है प्रेम और विरहकी तीरतासे प्रभावित होकर परवती सूफ्यिाने खींचतानकर इस काव्यमे अपनी भावनाओंको विसी प्रकार आरोपितकर लिया था। सामान्य जनतामें भी यह काव्य कापी लोकप्रिय था, यह बात तो अयदुकांदिर बदायूनीने स्पष्ट शब्दोंमें लिखा ही है। इस ग्रन्थकी अधिकाश उपलब्ध प्रतियोंका सचिर होना भी, इस यातका समर्थन करता है। चित्रकारी और उनके सरक्षकोंको इस कायम अत्यधिक रस मिलता रहा होगा तभी तो उन्होंने एक एक कडवरको चिरित परनेका श्रम किया और अपना पैसा यहाया । विद्वानों में भी इस ग्रन्थका मान था । हजरत रखनुद्दीन ने, जो अपयरकालीन सदर उद्-सदर (प्रधान न्यायाधीश) दोस असदुर्नबीके पिता थे, लताफते मुद्भूसिया नामक एक ग्रन्थ लिसा है। उसमें उन्होंने चन्दायनको प्रशसाकी है और लिसा है कि उनके पिता हजरत अबदुवुदुस गगोहीने उसका पारसी अनुवाद क्यिा था किन्तु दुर्भाग्य यश वह दिल्ली मुल्तान बहलोल लोदी और गैनपुर सुल्तान हुसेनशाह शनाये बीच युद्धये समप नष्ट हो गया। उन्होंने अपनी स्मृतिसे ६८ व कडवकको तीन पतियाँ और उनका अपने पिता द्वारा दिया गया पारसी अनुवाद भी अपने अन्यमे उद्धृत किया है। १. लताफ्ने युद्धमिया, मतदा ८ मुतवां (दिल्ली में मुदित स्मरण, ४ ९९.१००।