पृष्ठ:चंदायन.djvu/८२

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(स) यावको शब्दप आरम्भमें सर्वत्र व और अन्तमे आये वावको प्राय उरे रूपम ग्रहण किया गया है। (ग) शब्दरे आरम्भम जाये अलिकको अ, आ, ई और उरे स्पमें और येो यो स्पम ग्रहण किया गया है। (घ) दशब्दव आरम्भम अलिफ और येर सयुक्त प्रयोगको ए और ऐकी अपेक्षा अइरे रूपमें पढ़ा गया है। (6) शब्द आरम्भम अलिफ और वायो सयुक्त प्रयोगको प्रसगानुमार ॐ, ओ, ओ अथवा आउ पढ़ा गया है। शब्दके अन्तम आनेपर उसे केवल आउ माना गया है। (च) सज्ञा आदि शब्दोंके अन्तम वाव और येथे सयुक्त प्रयोगको प्ररागा नुसार वे अथवा वै पढ़ा गया है, कि तु निराओं में हम वैको अभा वह पाठ अधिक सगत और उचित जान पड़ा है। ० यदि गृहीत प्रतिरे पाठमैं कहीं कोई छूट या अभाव है तो वह दूसरी प्रतिसे लेार पूरा किया गया है । इस प्रसार दूसरी प्रतिसे ग्रहण किये हुए पाटो बड़े कोष्ठक-[ ] म दिया गया है। • यदि छूटे हुए पाटकी पृति अनुमानसे की गयी है तो उसे पडे कोष्ठक ] मे रसकर ताराक्ति कर दिया गया है। ० छुटे हुए पाठकी पूर्ति यदि किसी प्रकार सम्भर नहीं हो सका है तो वहाँ बड़े कोष्ठक [ ] के भीतर अनुपल्य मानाऑरे अनुसार डैश रख दिये गये है। यदि कही लिपिक्ने प्रमादवश किसी शब्दको दुहरा दिया है तो ऐसे शन्दको ताराक्ति कर दिया गया है। यदि उसने कोई अनपेक्षित अतिरित्त शब्द रस दिया है तो पाठसे उस शब्दको निकाल दिया गया है और मूल पाठ अलग सग्रह कर दिया गया है। .इसी प्रकार वोद पाट स्पण रूपसे अशुद्ध जान पा तो वहाँ सम्भावित पाठ छोटे कोष्ठर ( ) म देकर मूल पाठो अलग सग्रह कर दिया गया है। . ऐसे शब्दोको, जिनका हम समुचित पाटोद्धार करने में असमर्थ रहे अपना जिना पाठ सम्पन्धमें हमें रिमी प्रसारस सदेह है, पाठरे अन्तगत भिन टाइपम दिया गया है। . प्रत्येक क्सको पाठरे नीचे अगुद्ध मूल पाठ अथवा पाठान्तर देकर टिप्पणी दिये गये है। प्रत्येक पनि से सम्पधित टिप्पणियाँ पति-मग्ख्या देकर अलग अलग दी गयी है। इन रिपणियॉर अन्तर्गत शन्दोंका अर्थ, व्याख्या, आवश्यक सूनना आदि दिया गया है। किन्तु यह कार्य पूर्ण विस्तारसे नहीं किया जा सका।