पृष्ठ:चंदायन.djvu/९१

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(चीकानेर प्रतिके प्रकाशित पाटके आधारपर) पहिले गावउँ सिरजनहारा । जिन सिरजा इह देवस बयारा ॥१ सिरजसि धरती और अकासू । सिरजति मेरु मैंदर कविलाम् ॥२ सिरजसि चाँद सुरुज उजियारा | सिरजसि सरग नखत का मारा ||३ सिरजसि छोह सीउ औ धूपा | सिरजसि फिरतन और सरूपा ॥४ सिरजसि मेघ पवन अँधकारा | सिरजसि वीजु कर चमकारा ॥५ जाकर सभै पिरिथिमी, कहेउँ एक सो गाइ ॥६ हिय घबरै मन हुल्हस, दूसर चित न समाइ ॥७ टिप्पणी-(१) सिजनहारा-सृष्टिकर्ता, इंश्वर । घयारा-चायु । (३) मेरु-सुमेरु पर्वत । मदर-मन्दराचल | कविलास-(कैलास> क्लारा> कविलास (वकारका प्रदलेष-कविलास) कैलास पर्वत; ऊँचे महल और स्वर्ग के अर्थमे भी जायसी आदिने कबिलासका प्रयोग किया है। (४) सीउ--शीत । (५) अंधकारा--अन्धकार । बीजु-बिजली । (पीकानेर प्रतिके प्रकाशित पाठके आधारपर) पुरुख एक सिरजसि उजियारा । नाँउ मुहम्मद जगत पियारा ॥१ जहिं लगि सबै पिरिथिमी सिरी । औ तिह नाँउ मौनदी फिरी ॥२ टिप्पणी-(२) मौनदी-मुनादी; ढिंढोरा । (बीकानेर मतिके प्रकाशित पाटके आधारपर) अबानकर उमर उसमान, अली सिंघ ये चारि ॥६ जे निदतु कर विज तिस, तुरहि झाले मारि ॥७ टिप्पणी-(६) मुहम्मद साहबके पश्चात् अवा यर (अबू बकर) (६३२-६३४ ई०), उमर (६३४.६४ ई०), अली (६४४-६५५ ई०) और उसमान