पृष्ठ:चंदायन.djvu/९३

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टिप्पणी-(1) खानजहाँ यह दिछीके तुगलफवंशीय सुल्तानों की ओरसे दी जाने- वाली एक उपाधि थी । यहाँ सानजहाँसे तात्पर्य सानजहाँ मकबूलसे है, जिन्हें साने आदम और काम-उल मुल्ककी भी उपाधि प्राप्त थी। वे मूल्त. तेलगाना निवासी मादक्षण थे और उनका नाम पटू या । मुसलमान हो जानेपर ये मुल्तान मुहम्मद तुगलस्के कृपापान बने। निरक्षर होते हुए भी वे अत्यन्त कुमार धुदि थे। मुहम्मद तुगलक उनमा अत्यन्त सम्मान करता था। पीरोज तुगलक ने उन्ह आना वजीर नियुक्त किया । वे पीरोजशाहके इतने विश्वास पात्र ये कि जब कभी वह राधानीसे बाहर रहता, उस समय वे ही उसका प्रतिनिधित्व करते थे। वे अत्यन्त धार्मिक, प्रजावत्सल और दीनबन्धु थे। सुप्रसिद्ध इतिहासकार अफीपने उनके जीवन चरित और उनके कार्योंरा बड़े विस्तारसे वर्णन क्यिा है। उसका कहना है कि सौनजहाँ मकबूल चिश्ती सन्त नसीरउद्दीन महमूद अवधीरे मुरीद (भक्त) थे । ७७२ हिजरी (१३७४ ई०) म उनकी मृत्यु हुई । (यम्बई ..) ऐजन, लह, पी महे सानजहाँ दर बाचे अद्ल व इन्साफ (वही, ग्वानजहाँकी प्रशंसा और उसके न्यायको चर्चा ) एक खम्भ मेदिनि कहँ कीन्हा । डोल परै जो होत न दीन्हा ॥१ थक पैरें लोग चढ़ावइ । कर गुन सीचि तीर लइ लावइ ॥२ हिन्दू तुरुक दुहुँ सम रास । सत जो होइ दुहुन्ह कह भारी ॥३ गउव सिंह एक पन्थ रेंगावइ । एक घाट दुहुँ पानि पियानई ॥४ एक दीठि देसइ सँसारू । अचल न चलें चलै घेवहारू ॥५ मेरु धरनि जस भारन, जग भारन संस्यार ॥६ सानजहानहु कौन बड़ाई, बड़ जो कीन्ह करतार ।। टिप्पणी-(७) गउव-गो, गाय । वासुदेवशरण अग्रवालकी धारणा है कि यह सम्भवतः (स.) गश्य (नील गाय)का रूप है। जगलमें नील गाय और शेरका मिलना और एक ही मार्गपर साम चलकर पानी पीना अधिक सम्भर है (पदमावत, पृ० १५)। किन्तु अवधी भोजपुरी क्षेत्रोंमें गायके लिए ही गउव सामान्य और प्रचलित शब्द है।