पृष्ठ:चंदायन.djvu/९५

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७ पाठान्तर--परशुराम चतुदीने इस कदवकके प्रथम चार पंक्तिमोका त्रिलोकीनाथ दीक्षितसे प्राप्त एस पाठ प्रकाशित किया है (हिन्दी साहित्य, द्वितीय सण्ड, पृ० २५०, पाद टिप्पणी २)। यह उन्हें किसी मौखिक परम्परासे प्रास हुआ था (हमारे नाम दीक्षितका १९ अगस्त १९६० का पन)। उसमे प्रात मुख्य पाटान्तर इस प्रकार है- १-हते उन्यासी; २-तहिया यह कवि सरस अभासी, ३-चितवन्ता । टिप्पणी--(२) जौनासादि-यह फीरोजशाह तुगलकके वजीर पानजहाँ मकबूलके पुत्र थे। उनका जन्म उस समय हुआ जब सानजहों के अधिकारों मुल्तानका इक्त था। उस समय सुलतान मुहम्मद तुगलकने स्वयं परमान भेज कर शिशुका नामकरण जौनाशाह किया था । उसे उस समय मुप्रसिद्ध सन्त जकरिया मुलतानीके नाती सुहरवी सन्त सस्नुहीनका भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। पिताकी मृत्युपर जोना- साह ७७२ हिजरो (१६७०ई०)में पीरोजशाह तुगलकके बधीर हुए और उन्हें भी पानजहाँकी उपाधि मिली। उनकी ख्याति अत्यन्त मेधावी और दूरदर्शी राजनीतिज्ञके रूपमें हैं। ये बीस बरसों तक पीरोजशाहके विश्वस्त सलाहकार रहे। किन्तु अन्तिम दिनों में उनका मुलतानके अधिकारों के प्रश्नको लेकर शाहजादा मुहम्मदसे, जो पीछे सुल्तान बना, मनमुटाव हो गया। निदान ७८१ हिजरी (सन् १३८६ ई.) में वे वजीरके पदसे हटा दिये गये और उनका मकान लूट लिया गया। उसी वर्ष उन्हे मलिक याकूब उर्फ सिकन्दर साँने मार डाला। (३) डलमऊ-यह उत्तर प्रदेशके रायबरेली जिलेका एक प्रसिद्ध करता है, और रायबरेलीसे ४४ मील और कानपुरसे ६१ मील पर स्थिति रेलवे अकशन है। वहाँ गगाके करारके ऊपर किलेका भग्नावशेष अब भी मौजूद है। १८ (बीकानेर प्रतिके प्रकाशित पाठके आधारपर) गोवर कहीं महर कर ठाऊँ । कूया वाइ बहुत अँचराऊँ ॥१ नरियर गोवा के तहँ रूखा । देखत रहे न लागै भूखा ॥२