पृष्ठ:चंदायन.djvu/९७

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८७ (६) पर-यड । पीपरा--पीपल | वितरी-इमली । सेवार---अधिर' । (७) पारी-वीचा ! (रीरेण्ड्स २) सिफ्ते बुतसानः पर हौज व मानदन जोगियान मर्दान ३ जनान दरा (सरोवरके ऊपर स्थित मन्दिरका घर्णन जहाँ स्रौ पुरर जोगी रहते है।) नारा पोसर कुण्ड सनाये । मढ़ि देव जेहिं पास उठाये ॥१ कानफाट नितइ आवहिं तहाँ । औ भगवन्त रहे सिंह महाँ ॥२ सिव [अ..........] छाये । पुरुख नाउँ तिह ठौर न जाये ॥३ भेरा डॅवरू डाक बजाये । सनद सुहाव इंदर मन भाये ॥४ जोगी सहस पॉच एक गावहिं । सींगी पूरहिं भसम चढावहिं ॥५ सिद्ध पुरुस गुन आगर, देसि लुभाने ठाउँ ॥६ कहत सुनत अस जान, दुनि चलि देसै जाउँ ॥७ टिप्पणी-(१) मदि-मण्डप, देवस्थान । (४) भेरा-मुँहसे पूंककर यजानेवाला या बाजा | डॅवरू-टमरू । डाक-डका। (५) सींगी-(स० शृग) सोगका बना पूछनेका बाजा । २१ (रीरेण्ड्स ३ पजाय [4]) सिफ्ते हौज व स्तापते आवे उ गोयद (सरोवर और उसके निर्मल जल का वर्णन) सरवर एक सफरि भरि रहा । झरनॉ सहस पाँच सिंह यहा ॥१ अति अवगाह न पायइ थाहा । पाते चूक सराहउँ काहा ॥२ [पास केवर कह नित आवइ] । देसत मोतीचूर सुहाचई ॥३ [कुचर लाख दोइ पानी चाहें] । तीर बैठि ते लेहिं भर आहे ॥४ [ठाँउ ठॉउ पैसे रसपारा] । घोर नहाइ न कोऊ पारा ॥५ [जाप होइ महरहिं के, - - - - सों कह - - - नी पाट ।६ [पाप रूप सरवर कै, रोवत बॉधी घाट ॥७