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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१३९

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किशोरी के मरने की खबर न पाऊँगा अन्न न खाऊँगा' और सीधा महल में चला गया, हुक्म देता गया कि भीमसेन को हमारे पास भेज दो।

राजा शिवदत्त महल में जाकर अपनी रानी कलावती के पास बैठ गया। उसके चेहरे की उदासी और परेशानी का सबब जानने के लिए कलावती ने बहुत-कुछ उद्योग किया मगर जब तक उसका लड़का भीमसेन महल में न आया, उसने कलावती की बात का कुछ भी जवाब न दिया। माँ-बाप के पास पहुंचते ही भीमसेन ने प्रणाम किया और पूछा, "क्या आज्ञा होती है?"

शिवदत्त––किशोरी के बारे में जो कुछ खबर आज पहुँची तुमने भी सुनी होगी?

भीमसेनी––जी हाँ।

शिवदत्त––अफसोस, फिर भी तुम्हें अपना मुँह दिखाते शर्म नहीं आती! न मालूम तुम्हारी बहादुरी किस दिन काम आयेगी और तुम किस दिन अपने को इस लायक बनाओगे कि मैं तुम्हें अपना लड़का समझू!

भीमसेन––मुझे जो आज्ञा हो, तैयार हूँ।

शिवदत्त––मुझे उम्मीद नहीं कि तुम मेरी बात मानोगे!

भीमसेन––मैं यज्ञोपवीत हाथ में लेकर कसम खाता हूँ कि जब तक जान बाकी है उस काम के करने की पूरी कोशिश करूँगा जिसके लिए आप आज्ञा देंगे!

शिवदत्त––मेरा पहला हुक्म यह है कि किशोरी का सिर काट कर मेरे पास लाओ।

भीमसेन––(कुछ सोच और ऊँची साँस लेकर) बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा। और क्या हुक्म होता है?

शिवदत्त––इसके बाद वीरेन्द्रसिंह या उनके लड़कों में से जब तक किसी को मार न लो यहाँ मत आओ। यह न समझना कि यह काम मैं तुम्हारे ही सुपुर्द करता हूँ। नहीं, मैं खुद आज इस शिवदत्तगढ़ को छोड़ेंगा और अपना कलेजा ठंडा करने के लिए पूरा उद्योग करूँगा। वीरेन्द्रसिंह का चढ़ता प्रताप देख कर मुझे निश्चय हो गया कि लड़ कर उन्हें किसी प्रकार नहीं जीत सकता इसलिए आज से मैं उनके साथ लड़ने का खयाल छोड़ देता हूँ और उस ढंग पर चलता हूँ जिसे ठग, चोर या डाकू लोग पसन्द करते हैं।

भीमसेन––अख्तियार आपको है, जो चाहें करें। मुझे आज्ञा हो तो इसी समय चला जाऊँ और जो कुछ हुक्म हुआ है उसे पूरा करने का उद्योग करूँ!

शिवदत्त––अच्छा जाओ मगर यह कहो कि अपने साथ किस-किस को ले जाते हो?

भीमसेन––किसी को नहीं।

शिवदत्त––तब तुम कुछ न कर सकोगे। दो-तीन ऐयार और दस-बीस लड़ाकों को अपने साथ जरूर लेते जाओ।

भीमसेन––आपके यहाँ ऐसा कौन ऐयार है जो वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का मुकाबला करे और ऐसा कौन बहादुर है जो उन लोगों के सामने तलवार उठा सके?