पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१७९

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भी पता लगेगा, मगर अबकी लाली का हाल मालूम करना चाहिए।

थोड़ी देर तक इन सब बातों को किशोरी सोचती रही, आखिर फिर अपने पलंग से उठी और कमरे के बाहर आई। उसकी हिफाजत करने वाली लौंडियाँ उसी तरह गहरी नींद में सो रही थीं। जरा रुककर वह बाग के उस कोने की तरफ बढ़ी जिधर लाली का मकान था। पेड़ों की आड़ में अपने को छिपाती और रुक-रुक कर चारों तरफ की आहट लेती हुई चली जाती थी। जब लाली के मकान के पास पहुँची तो धीरे-धीरे किसी की बातचीत की आहट पाकर एक अंगूर की झाड़ी में रुक रही और कान लगा कर सुनने लगी, केवल इतना ही सुना, "आप बेफिक्र रहिए, जब तक मैं जीती हूँ, कुन्दन किशोरी का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती और न ही उसे कोई दूसरा ले जा सकता है। किशोरी इन्द्रजीतसिंह की है और बेशक उन तक पहुँचाई जायगी।"

किशोरी ने पहचान लिया कि यह लाली की आवाज है! लाली ने यह बात बहुत धीरे से कही थी, मगर किशोरी बहुत पास पहुंच चुकी थी, इसलिए बखूबी सुनकर पहचान सकी कि लाली की आवाज है, मगर यह न मालूम हुआ कि दूसरा आदमी कौन है। लाली अपने कमरे के पास ही थी, बात कहकर तुरन्त दो-चार सीढ़ियाँ चढ़ अपने कमरे में घुस गई और उसी जगह से एक आदमी निकल कर पेड़ों की आड़ में छिपता हआ बाग की पिछली तरफ, जिधर दरवाजे में बराबर ताला बन्द रहने वाला मकान था, चला गया, मगर उसी समय जोर-जोर से 'चोर-चोर' की आवाज आई। किशोरी ने इस आवाज को भी पहचान कर मालूम कर लिया कि कुन्दन है जो उस आदमी को फंसाया चाहती है। किशोरी फौरन लपकती हुई अपने कमरे में चली आई और 'चोर-चोर' की आवाज वढ़ती ही गई।

किशोरी अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट रही और उन बातों पर गौर करने लगी जो अभी दो-तीन घण्टे के हेर-फेर में देख-सुन चुकी थी। वह मन-ही-मन कहने लगी, "कुन्दन की तरफ भी गई और लाली की तरफ भी गई, जिससे मालूम हो गया कि वे दोनों ही एक-एक आदमी से जान-पहचान रखती हैं जो बहुत छिपकर इस मकान में आता है। कुन्दन के साथ जो आदमी मिलने आया था, उसकी जबानी जो कुछ मैंने सुना, उससे जाना जाता था कि कुन्दन मुझसे दुश्मनी नहीं रखती, बल्कि मेहरबानी का बर्ताव किया चाहती है। इसके बाद जब लाली की तरफ गई तो वहाँ की बातचीत से मालूम हुआ कि लाली सच्चे दिल से मेरी मददगार है और कुन्दन शायद दुश्मनी की निगाह से मुझे देखती है। हाँ ठीक है, अब समझी, बेशक ऐसा ही होगा। नहीं-नहीं, मुझे कुन्दन की बातों पर विश्वास न करना चाहिए! अच्छा, देखा जायेगा। कुन्दन ने बेमौके चोर-चोर का शोर मचाया, कहीं ऐसा न हो कि बेचारी लाली पर कोई आफत आवे।"

इन्हीं सब बातों को सोचती हुई किशोरी ने बची हुई थोड़ी-सी रात जाग कर है। बिता दी और सुबह की सफेदी फैलने के साथ ही अपने कमरे के बाहर निकली क्योंकि रात की बातों का पता लगाने के लिए उसका जी बेचैन हो रहा था।

किशोरी जैसे ही दालान में पहुँची, सामने से कुन्दन को आते हुए देखा। कुन्दन