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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२००

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ज्यादा की देर हो गई। ऐसा करने से तेजसिंह का अभिप्राय यह था कि देर होने से असली रामानन्द अवश्य महाराज के पास आवेगा और मुझे देख चौंकेगा, उसी समय मैं अपना काम निकाल लूँगा जिसके लिए उसकी दाढ़ी-मूँछ लाया हूँ! और आखिर तेज- सिंह का सोचना ठीक ही निकला।

तेजसिंह रामानन्द की सुरत में जिस समय महाराज के पास आये थे, उस समय ड्योढ़ी पर जितने सिपाही पहरा दे रहे थे, सब बदल गए और दूसरे सिपाही अपनी वारी के अनुसार ड्योढ़ी के पहरे पर मुस्तैद हुए, जो इस बात से बिल्कुल ही बेखबर थे कि रामानन्द महाराज से मिलने के लिए महल में गये हैं।

ठीक समय पर दरबार लग गया। बड़े-बड़े ओहदेदार, नायब दीवान, तहसीलदार, मुंशी, मुत्सद्दी इत्यादि और मुसाहिब लोग दरबार में आकर जमा हो गये। असली रामानन्द अपनी दीवान की गद्दी पर आकर बैठ गया, मगर अपनी दाढ़ी की तरफ से बिल्कुल ही बेखबर था। उसे तेजसिंह का मामला कुछ भी मालूम न था, तो भी यह जानने के लिए वह बड़ी ही उलझन में पड़ा हुआ था कि उस दरवाजे के जालीदार पर्दे में की घंटियाँ किसने काट डाली थीं। घर-भर के आदमियों से उसने पूछा और पता लगाया, मगर पता न लगा। इससे उसके दिल में शक हुआ कि इस मकान में जरूर कोई ऐयार आया था, मगर उसने आकर क्या किया सो नहीं जाना जाता। हाँ, मेरे इस खयाल को उसने जरूर मटियामेट कर दिया कि घंटियाँ लगे हुए जालदार पर्दे के अन्दर मेरे कमरे में चुपके से कोई नहीं आ सकता, उसने बता दिया कि यों आ सकता है। बेशक मेरी भूल थी कि उस पर्दे पर इतना भरोसा रखता था, लेकिन क्या खाली यही बताने के लिए वह ऐयार आया था?

इन्हीं सब बातों को सोचता हुआ रामानन्द अपने जरूरी कामों से छुट्टी पा दरवारी कपड़े पहन बन-उच कर दरवार की तरफ रवाना हुआ। बेशक आज उसे कुछ देरी हो गई थी और वह सोच रहा था कि महाराज दरबार में जरूर आ गये होंगे, मगर वहाँ पहुँचकर उसने गद्दी खाली देखी और पूछने से मालूम हुआ कि अभी तक महाराज के आने की कोई खबर नहीं। रामानन्द क्या, सभी दरबारी ताज्जुब कर रहे थे कि आज महाराज को देर क्यों हुई।

रामानन्द को महाराज बहुत मानते थे, वह उनका मुँहलगा था, इसीलिए सभी ने वहाँ आकर हाल मालूम करने के लिए इसको ही कहा। रामानन्द खुद भी घबराया हुआ था और महाराज का हाल मालूम करना चाहता था। अस्तु, थोड़ी देर बैठकर वहाँ से रवाना हुआ और ड्योढ़ी पर पहुँचकर इत्तिला करवाई।

रामानन्द रूपी तेजसिंह बैठे महाराज से बातें कर रहे थे कि एक खिदमतगार आया और हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया। उसी सूरत से मालूम होता था कि वह घबराया हुआ है और कुछ कहना चाहता है, मगर आवाज मुँह से नहीं निकलती। तेजसिंह समझ गए कि अब कुछ गुल खिला चाहता है। आखिर खिदमतगार की तरफ देख कर बोले––

तेजसिंह––क्यों, क्या कहना चाहता है?