ज्योतिषीजी ने किशोरी को पहचाना, किशोरी के साथ लाली का नाम लेकर भी पुकारा, मगर अभी यह नहीं मालूम हुआ कि लाली को ज्योतिषीजी क्योंकर और कब से जानते थे। हाँ, किशोरी और लाली को इस बात का ताज्जुब था कि दारोगा ने उन्हें पहचान लिया, क्योंकि ज्योतिषीजी दारोगा के भेष में थे।
ज्योतिषी ने किशोरी ओर लाली को अपने पास बुलाकर कुछ बात करना चाहा, मगर मौका न मिला। उसी समय घण्टे के बजने की आवाज आयी और ज्योतिषीजी समझ गये कि महाराज आ रहे हैं। मगर इस समय महाराज क्यों आते हैं? शायद इस वजह से कि लाली और किशोरी इस तहखाने में घुस आयी हैं और इसका हाल महाराज को मालूम हो गया है।
जल्दी के मारे ज्योतिषीजी सिर्फ दो काम कर सके। एक तो किशोरी और लाली की तरफ देखकर बोले, "अफसोस, अगर आधी घड़ी की भी मोहलत मिलती तो तुम्हें यहाँ से निकाल ले जाता, क्योंकि यह सब बखेड़ा तुम्हारे ही लिए हो रहा है।" दूसरे, उस औरत की जुबान पर मसाला लगा सके जिसमें वह महाराज के सामने कुछ कह न सके। इतने ही में मशालचियों और कई जल्लादों को लेकर महाराज आ पहँचे और ज्योतिषीजी की तरफ देखकर बोले, "इस तहखाने में किशोरी और लाली आई हैं, तुमने देखा है?"
दरोगा-(खड़े होकर) जी, अभी तक तो यहाँ नहीं पहुँची।
महाराज-खोजो, कहाँ हैं, यह औरत कौन है?
दरोगा-मालूम नहीं, कौन है और क्यों आई है? मैंने इसी तहखाने में इसे गिरफ्तार किया है, पूछने से कुछ नहीं बताती।
महाराज-खैर किशोरी और लाली के साथ इसे भी भूतनाथ पर चढ़ा देना (बलि देना) चाहिए, क्योंकि यही यहाँ का बँधा कायदा है कि लिखे आदमियों के सिवा दूसरा जो इस तहखाने को देख ले, उसे तुरत बलि दे देना चाहिए।
सब लोग किशोरी और लाली को खोजने लगे। इस समय ज्योतिषीजी घबराये और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कुँअर आनन्दसिंह और हमारे ऐयार लोग जल्द यहाँ आवें जिसमें किशोरी की जान बचे।
किशोरी और लाली कहीं दूर न थीं, तुरत गिरफ्तार कर ली गईं और उनकी मुश्कें बंध गईं। इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पूछा जिसकी जबान पर ज्योतिषीजी ने दवा मल दी थी, पर उसने महाराज की बात का कुछ भी जबाब न दिया। आखिर खंभे से खोलकर उसकी भी मुश्कें बांध दी गई और तीनों और दरवाजे की राह दूसरी संगीन बारहदरी में पहुंचाई गईं जिसमें सिंहासन के ऊपर स्याह पत्थर की वह भयानक मूरत बैठी हुई थी जिसका हाल इस सन्तति के तीसरे भाग के आखिरी बयान में हम लिख आये हैं। इसी समय आनन्दसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह वहाँ पहुँचे और उन्होंने अपनी आँखों से उस औरत के मारे जाने का दृश्य देखा जिसकी जबान पर दवा लगा दी गई थी। जब किशोरी के मारने की बारी आई तब कअर आनन्दसिंह और दोनों ऐयारों से न रहा गया और उन्होंने खंजर निकाल कर उस झुण्ड