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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२१३

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पर टूट पड़ने का इरादा किया, मगर वह न हो सका, क्योंकि पीछे से कई आदमियों ने आकर इन तीनों को पकड़ लिया।

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के समय गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं।

सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं, चारों तरफ अँधेरी रात घिरी आती है। गंगाजी शान्त-भाव से धीरे-धीरे बह रही हैं। आसमान पर छोटे-छोटे बादल के टुकड़े पूरब की तरफ से चले आकर पश्चिम की तरफ इकट्ठे हो रहे हैं। गंगा के किनारे पर ही एक नौजवान औरत, जिसकी उम्र पन्द्रह वर्ष से ज्यादा न होगी, हवेली पर गाल रखे जल की तरफ देखती न मालूम क्या सोच रही है। इसमें कोई शक नहीं कि यह औरत नखशिख से दुरुस्त और खूबसूरत है मगर रंग इसका साँवला है, तो भी इसकी खूबसूरती और नजाकत में किसी तरह का बट्टा नहीं लगता। थोड़ी-थोड़ी देर पर यह औरत सिर उठा कर चारों तरफ देखती और फिर उसी तरह हथेली पर गाल रखकर कुछ सोचने लग जाती है।

इसके सामने ही गंगाजी में एक छोटा-सा बजरा खड़ा है जिस पर चार-पाँच आदमी दिखाई दे रहे हैं और कुछ सफर का सामान और दो-चार हर्वे भी मौजूद हैं।

थोड़ी देर में अँधेरा हो जाने पर वह औरत उठी, साथ ही बजरे पर से दो सिपाही उतर आए और उसे सहारा देकर बजरे पर ले गये। वह छत पर जा बैठी और किनारे की तरफ इस तरह देखने लगी जैसे किसी के आने की राह देख रही हो। बेशक ऐसा ही था, क्योंकि उसी समय हाथ में गठरी लटकाये एक आदमी आया जिसे देखते ही दो मल्लाह किनारे पर उतर आये, एक ने उसके हाथ से गठरी लेकर बजरे की छत पर पहुँचा दी और दूसरे ने उस आदमी को अपने हाथ का हल्का सहारा देकर बजरे पर चढ़ा लिया। वह भी छत पर उस औरत के सामने खड़ा हो गया और तब इशारे से पूछा कि 'अब क्या हुक्म होता है?' जिसके जवाब में इशारे ही से उस औरत ने गंगा के उस पार की तरफ चलने को कहा। उस आदमी ने, जो अभी आया था, माँझियों को पुकार कर कहा कि बजरा उस पार ले चलो, इसके बाद अभी आये हुए आदमी और उस औरत में दो-चार बातें इशारों में हुईं जिन्हें हम कुछ नहीं समझे। हाँ, इतना मालूम हो गया कि यह औरत गूंगी और बहरी है, यह मुँह से कुछ नहीं बोल सकती और न कान से कुछ सुन सकती है।

बजरा किनारे से खोला गया और वह पार की तरफ चला। चार माँझी डाँडे