सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
229
 


बात न हुई थी। सैकड़ों आदमी इसके सामने बलि हो गये, लेकिन ऐसी नौबत न आयी थी। अब राजा को विश्वास हो गया कि इस मूरत में कोई करामात जरूर है तभी तो बड़े लोगों ने बलि का प्रबन्ध किया है। यद्यपि राजा ऐसी बातों पर विश्वास कम रखता था, परन्तु आज उसे डर ने दबा लिया। उसने सोच-विचार में ज्यादा समय नष्ट न किया और उसी ताली से बारह नम्बर वाली कोठरी खोलकर किशोरी को उसके अन्दर बन्द कर दिया।

राजा दिग्विजयसिंह ने अभी इस काम से छुट्टी न पायी थी कि बहुत से आदमियों को साथ लेकर पण्डित बद्रीनाथ उस तहखाने में आ पहुँचे। कुँअर आनन्दसिंह और तारासिंह को बेबस पाकर झपट पड़े और बहुत जल्द उनके हाथ-पैर खोल दिए। महाराज के आदमियों ने इनका मुकाबला किया, पण्डित बद्रीनाथ के साथ जो आदमी आये थे वे लोग भी भिड़ गये। जब आनन्दसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह छूटे तो लड़ाई गहरी हो गयी। इन लोगों के सामने ठहरने वाला कौन था? केवल चार ऐयार ही उतने लोगों के लिए काफी थे। कई मारे गये, कई जख्मी होकर गिर पड़े। राजा दिग्विजयसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया, वीरेन्द्रसिंह की तरफ का कोई न मरा। इन सब कामों से छुट्टी पाने के बाद किशोरी की खोज की गयी।

इस तहखाने में जो कुछ आश्चर्य की बातें हुई थीं, सभी ने देखी-सुनी थीं। लाली और ज्योतिषीजी ने सब हाल आनन्दसिंह और ऐयार लोगों को बताया और यह भी कहा कि किशोरी बारह नम्बर की कोठरी में बन्द कर दी गयी है।

पण्डित बद्रीनाथ ने दिग्विजयसिंह की कमर से ताली निकाल ली और बारह नम्बर की कोठरी खोली, मगर किशोरी को उसमें न पाया। चिराग लेकर अच्छी तरह ढूंढ़ा परन्तु किशोरी न दिखाई पड़ी, न मालूम जमीन में समा गयी या दीवार खा गयी। इस बात का आश्चर्य सभी को हुआ कि बन्द कोठरी में से किशोरी कहाँ गायब हो गयी! हाँ, एक कागज का पुर्जा उस कोठरी में जरूर मिला जिसे भैरोंसिंह ने उठा लिया और पढकर सभी को सुनाया। यह लिखा था-

"धनपति रंग मचायौ, साध्यौ काम।
भोली भलि मुड़ि ऐहैं यदि यहि ठाम॥"

इस 'बरवै' का मतलब किसी की समझ में न आया, लेकिन इतना विश्वास हो गया कि अब इस जगह किशोरी का मिलना कठिन है। उधर लाली इस बरवै को सुनते ही खिलखिला कर हँस पड़ी, लेकिन जब लोगों ने हँसने का सबब पूछा तो कुछ जवाब न दिया, सिर नीचा करके चुप हो रही। जब ऐयारों ने बहुत जोर दिया तो बोली, "मेरे हँसने का कोई खास सबब नहीं है। बड़ी मेहनत करके किशोरी को मैंने यहाँ से छुड़ाया था। (किशोरी के छुड़ाने के लिए जो-जो काम उसने किये थे, सब कहने के बाद) मैं सोचे हुए थी कि इस काम के बदले में राजा वीरेन्द्रसिंह से कुछ इनाम पाऊँगी, लेकिन कुछ न हुआ, सेरी मेहनत चौपट हो गयी, मेरे देखते-ही-देखते किशोरी इस कोठरी में बन्द हो गयी थी। जव आप लोगों ने कोठरी खोली तो मुझे उम्मीद थी कि उसे देखेंगी और वह अपनी जुबान से मेरे परिश्रम का हाल कहेगी, परन्तु कुछ नहीं। ईश्वर की भी