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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२४५

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यहाँ जिस काम के लिए आया था, मेरा वह काम हो चुका। अब मैं यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं समझता। आप लोग अपने मतलब की बातचीत करें, क्योंकि मदद के लिए मैं बहुत जल्द कुँअर इन्द्रजीतसिंह के पास पहुँचना चाहता हूँ। हाँ, यदि आप कृपा करके अपना एक ऐयार मेरे साथ कर दें तो उत्तम हो और काम भी शीघ्र हो जाय।

वीरेन्द्रसिंह–(खुश होकर) अच्छी बात है, आप जाइये और मेरे जिस ऐयार को चाहें, साथ लेते जाइये।

शेरसिंह-अगर आप मेरी मर्जी पर छोड़ते हैं तो मैं देवीसिंह को अपने साथ के लिए माँगता हूँ।

तेजसिंह–हाँ, आप खुशी से इन्हें ले जायँ। (देवीसिंह की तरफ देखकर) आप तैयारी कीजिए।

देवीसिंह-मैं हरदम तैयार ही रहता हूँ। (शेरसिंह से) चलिए, अब इन लोगों का पीछा छोड़िए।

देबीसिंह को साथ लेकर शेरसिंह रवाना हुए और इधर इन लोगों में विचार होने लगा कि अब दया करना चाहिए। घण्टे भर में यह निश्चय हुआ कि लाली से कुछ विशेष पूछने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह अपना हाल ठीक-ठीक कभी न कहेगी। हाँ, उसे हिफाजत में रखना चाहिए और तहखाने को अच्छी तरह देखना और वहाँ का हाल मालूम करना चाहिए।

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अब तो कुन्दन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा। पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कण्ठित हो रहे होंगे। हमने कुन्दन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुन्दन इस फिक्र में लगी रहती थी कि किशोरी किसी तरह लाली के कब्जे में न पड़ जाय।

जिस समय किशोरी को लेकर सेंध की राह लाली उस घर में उतर गई जिसमें से तहखाने का रास्ता था और यह हाल कुन्दन को मालूम हुआ, तो वह बहुत घबराई। उसने महल-भर में इस बात का गुल मचा दिया। वह सोच में पड़ी कि अब क्या करना चाहिए। हम पहले लिख आये हैं कि किशोरी और लाली के जाने के बाद 'धरो! पकड़ो!' की आवाज लगाते हुए कई आदमी सेंध की राह उसी मकान में उतर गये जिसमें लाली और किशोरी गई थीं।

उन्हीं लोगों में मिलकर कुन्दन भी एक छोटी-सी गठरी कमर साथ बाँध उस मकान के अन्दर चली गई और यह हाल घबराहट और शोरगुल में किसी को मालूम न हुआ। उस मकान अन्दर भी बिल्कुल अँधेरा था। लाली ने दूसरी कोठरी में जाकर दरवाजा बन्द कर लिया, इसलिए लाचार होकर पीछा करनेवालों को लौटना