पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/५६

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गई, लाचार वह छत के नीचे उतर आई और एक सजे-सजाये कमरे में चली गई।

इस कमरे की सजावट मुख्त सिर ही थी, एक झाड़ और दस-बारह हाँडियाँ छत से लटक रही थीं, चारों तरफ दुशाखी दीवारगीरों में मोमबत्तियाँ जल रही थीं, जमीन पर फर्श बिछा हुआ था और एक तरफ गद्दी लगी हुई थी जिसके आगे दो फर्शी झाड़ अपनी चमक-दमक दिखा रहे थे, उनके बगल ही में एक मसहरी थी जिस पर थोड़े से खुशबूदार फूल और दो-तीन गजरे दिखाई दे रहे थे। अच्छे-अच्छे कपड़ों और गहनों से दिमागदार बनी हुई दस-बारह कमसिन छोकरियाँ भी इधर-उधर घूम-घूमकर ताखों (आलों) पर रक्खे हुए गुलदस्तों में फूलों के गुच्छे सजा रही थीं।

वह नाजनीन जिसका नाम किशोरी था कमरे में आई मगर गद्दी पर न बैठ कर मसहरी पर जा लेटी और आँचल से मुंह ढाँप न मालूम क्या सोचने लगी। उन्हीं छोकरियों में से एक पंखा झलने लगी, वाकी अपनी मालिक को उदास देख सुस्त खड़ी हो गई मगर निगाहें सभी की मसहरी की तरफ ही थीं।

थोड़ी देर तक इस कमरे में सन्नाटा रहा, इसके बाद किसी आने वाले की आहट मालूम हुई। सभी की निगाह सदर दरवाजे की तरफ घूम गई। किशोरी ने भी मुँह फेरा और उसी तरह देखने लगी। एक नौजवान लड़का सिपाहियाना ठाठ से उस कमरे में आ पहुँचा जिसे देखते ही किशोरी घबरा कर उठ बैठी और बोली-

"कमला, मैं कब से राह देख रही हूँ! तैने इतने दिन क्यों लगाये?"

पाठक समझ गये होंगे कि यह सिपाहियाना ठाठ से आने वाला नौजवान लड़का असल में मर्द नहीं है बल्कि कमला के नाम से पुकारी जाने वाली कोई ऐयारा है।

कमला—यही सोच के मैं चली आई कि तुम घबरा रही होगी, नहीं तो दो दिन का काम और था।

किशोरी-क्या अभी पूरा हाल मालूम नहीं हुआ?

कमला-नहीं।

किशोरी-चुनार में तो हलचल खूब मची होगी!

कमला-इसका क्या पूछना है! मुझे भी जो कुछ थोड़ा-बहुत हाल मिला, वह चुनार ही में।

किशोरी-अच्छा, क्या मालूम हुआ?

कमला–बूढ़े सौदागर की सूरत बना जब मैं तुम्हारी तस्वीर से जड़ी अँगूठी दे आई, उसी समय से उनकी सूरत-शक्ल, बातचीत और हाल-चाल में फर्क पड़ गया, दूसरे दिन मेरी (सौदागर की) बहुत खोज की गयी।

किशोरी-इसमें कोई शक नहीं कि मेरी आह ने अपना असर किया! हाँ, फिर क्या हुआ?

कमला-उसके दूसरे या तीसरे दिन उन्हें उदास देख आनन्दसिंह किश्ती पर हवा खिलाने ले गये, साथ में एक बूढ़ा नौकर भी था। बहाव की तरफ कोस डेढ़ कोस जाने के बाद किनारे के जंगल से गाने-बजाने की आवाज आई। उन्होंने किश्ती किनारे लगाई और उतरकर देखने लगे। वहाँ तुम्हारी सूरत बन माधवी ने पहले ही जाल फैला