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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/७

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और यह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। ये ऐयार और ऐयारा नायक राजकुमार के सहायक होते हैं। जासूसी उपन्यासों में जो काम जासूस करते हैं, वही काम तिलिस्मी उपन्यासों में ऐयार और ऐयारा करते हैं।-पलक झपककर कहीं भी पहुंचना, वेष बदलना, शत्रु को चकमा देना और अपने बटुए में विचित्र चीजें रखना, किसी को बेहोश कर देना, और फिर समय आने पर होश में लाकर अपना काम करा लेना, संघर्ष आदि ये सारे काम तिलिस्मी संरचना के अंग हैं। लेकिन खत्री जी ने इस सारे रचनात्मक विधान में अपनी मौलिकता भी स्थापित की है। यद्यपि चन्द्रकान्ता और चन्द्रकान्ता संतति तथा भूतनाथ आदि रचनाओं में कथानक लगभग एक-सा ही है और बाहर से वह केवल रहस्यमय और मनोरंजक लगता है, लेकिन यदि उसमें भी जीवन की अर्थवत्ता ढूँढ़ी जाये तो अनेक सार्थक और मूल्य गर्भित संकेत मिल जायेंगे। यह विचित्र बात है कि राजकुमार, राजकुमारी का प्रेम फिर उस प्रेम को पाने के लिए विरोधी शक्तियों का संघर्ष, शौर्य और निष्ठा के अन्तरंग संयोग पर जीवन विकास की विविध छवियाँ ऐसी कृतियों को समय बाहर नहीं होने देतीं। तिलिस्म का यह स्वरूप ही जहाँ रहस्यमयता पैदा करता है, वहाँ कौतूहल और मनोरंजन का आधार भी होता है।

देवकीनन्दन खत्री की प्रथम रचना 'चद्रकान्ता' है और उसी क्रम में 'चन्द्रकान्ता संतति' आती है। चन्द्रकान्ता में नौगढ़ के राजकमार वीरेन्द्र सिंह और विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकान्ता के प्रेम और संघर्ष की कहानी है। वीरेन्द्रसिंह, चन्द्रकान्ता पर मुग्ध होते हैं और उसे पाना चाहते हैं। लेकिन क्रूरसिंह भी चन्द्रकान्ता से विवाह करना चाहता है और शिवदत्त (चुनार का राजा) से मिलकर दोनों प्रेमियों के बीच बाधा बनता है। अन्त में क्रूरसिंह की मृत्यु होती है और नायक-नायिका का मिलन हो जाता है। उन्हें तिलिस्म में से बहुत अधिक सम्पत्ति मिलती है।

वीरेन्द्र सिंह और चन्द्रकान्ता की मृत्यु कथा को अन्य प्रासंगिक कथाओं से विस्तार दिया गया है। चपला और तेजसिंह भी प्रमुख पात्र होते हैं। और वे पाठक की कौतूहल वृत्ति को बनाये रखते हैं। इतनी विस्तृत कथा को लेखक अत्यन्त सुगठित रूप में आगे बढ़ाता रहता है।

'चन्द्रकान्ता संतति' में-24 भागों में इसी कथा को विकसित किया गया है। चन्द्रकान्ता के दो राजकुमार इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के प्रेम पर आधारित लगभग पूर्ववर्ती कथा के अनुरूप वस्तु विन्यास किया गया है। चन्द्रकान्ता में जहाँ एक युगल का संघर्ष प्रमुख है वहाँ संतति में दो युगल प्रमुख हैं। और इस कारण पात्रों की संख्या बढ़ गई है। और खत्री जी ने इन बढ़े हुए पात्रों को भी अत्यन्त कुशलता से निभाया है। अनेक विद्वानों ते खत्री जी की कथा संगठनात्मक शक्ति की प्रसंसा की है।


सर्जनात्मक उपलब्धि

जैसा कि पहले कहा गया है कि हिंदी उपन्यास पर काम करते हुए ऐतिहासिक मोड़ और शुरूआत की दृष्टि से चन्द्रकान्ता का नाम लेना बहुत अनिवार्य हो जाता है।