पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/७३

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भैरोसिंह-उससे बढ़ कर कोई राय नहीं हो सकती। ये लोग भी क्या कहेंगे कि किसी से काम पड़ा था।

बद्रीनाथ—यहाँ तो बस ललिता और तिलोत्तमा ही शैतानी की जड़ हैं। सुनते हैं उनकी ऐयारी भी बहुत बढ़ी-चढ़ी है।

तारा-पहले उन्हीं दोनों की खबर ली जायेगी।

भैरोसिंह-नहीं-नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं। उन्हें गिरफ्तार किये बिना ही हमारा काम चल जायेगा, व्यर्थ कई दिन बर्बाद करने का मौका नहीं है।

तारा–हाँ, यह ठीक है। हमें उन की इतनी जरूरत भी नहीं है और क्या ठिकाना जब तक हम लोग अपना काम करें तब तक वे चाची के फंदे में आ फँसें।

भैरोंसिंह-बेशक ऐसा ही होगा, क्योंकि उन्होंने कहा भी था कि तुम लोग इस काम को करो, तब तक बन पड़ेगा तो मैं ललिता और तिलोत्तमा को भी फँसा लूँगी।

बद्रीनाथ-खैर, जो होगा, देखा जायेगा। अब हम लोग अपने काम में क्यों देर कर रहे हैं?

भैरोंसिंह-देर की जरूरत क्या है उठिए, हाँ, पहले अपना-अपना शिकार बाँट लीजिए।

बद्रीनाथ-दीवान साहब को मेरे लिए छोड़िए।

भैरोंसिंह-हाँ, आपका-उनका वजन बराबर है। अच्छा, मैं सेनापति की खबर लूँगा।

तारा-तो वह चाण्डाल कोतवाल मेरे बाँटे पड़ा! खैर, यही सही।

भैरोंसिंह-अच्छा, अब यहाँ से चलो। ये तीनों ऐयार वहाँ से उठे ही थे कि दाहिनी तरफ से छींक की आवाज आई।

बद्रीनाथ-धत्तेरे की, क्या तेरे छींकने का कोई दूसरा समय न था?

तारा-क्या आप छींक से डर गए?

बद्रीनाज—मैं छींक से नहीं डरा, मगर छींकने वाले से जी खटकता है।

भैरोंसिंह-हमारे काम में विघ्न पड़ता दिखाई देता है।

बद्रीनाथ-इस दुष्ट को पकड़ना चाहिए, बेशक यह चुपके-चुपके हमारी बाते सुनता रहा।

तारा-छींक नहीं, बदमाशी है!

बद्रीनाथ ने इधर-उधर बहुत ढूँढ़ा, मगर छींकने वाले का पता न लगा। लाचार तरद्दुद ही में तीनों वहाँ से रवाना हुए।