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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/८६

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पहला-बस, यही एक बात झूठ मुंह से निकल गई। अब कोई बात झूठ न कहूँगा, माफ कीजिये।

कोतवाल बेचारा ताज्जुब में आकर सोचने लगा कि उस औरत की मुझमें क्योंकर मुहब्बत हो गई जिसकी खूबसूरती की ये लोग इतनी तारीफ कर रहे हैं? थोड़ी देर बाद फिर पूछा-

कोतवाल-हाँ, तो आगे क्या हुआ?

पहला—(अपने भाई की तरफ इशारा करके) बस, यह उस पर आशिक हो गया और उसे तंग करने लगा।

दूसरा-यह भी उस पर आशिक होकर उसे छेड़ने लगा।

पहला-जी नहीं, उसने मुझे कबूल कर लिया और मुझसे शादी करने पर भी राजी हो गई, बल्कि उसने यह भी कहा कि मैं दो दिन तक यहां रह कर तुम्हारा आसरा देखूँगी, अगर तुम पालकी लेकर आओगे तो तुम्हारे साथ चली चलूंगी।

दूसरा-जी नहीं, यह बड़ा भारी झूठा है, जब यह उसकी खुशामद करने लगा तब उसने कहा कि मैं उसी के लिए जान देने को तैयार हूँ, जिसकी तस्वीर मेरे सामने है। जब इसने उसकी बात न सुनी तो उसने अपनी तलवार से इसे जख्मी किया और मुझसे बोली कि तुम जाकर मेरे दोस्त को जहाँ भी हो ढूंढ़ निकालो और कह दो कि मैं तुम्हारे लिए बर्बाद हो गई, अब भी तो सुध लो, जब मैंने इसे मना किया तो यह मुझसे झगड़ पड़ा। असल में यही लड़ाई का सबब हुआ।

पहला-जी नहीं, यह सन्देशा उसने मुझे दिया क्योंकि यही उसे दुःख दे रहा था।

दूसरा-नहीं, यह झूठ बोलता है।

पहला-नहीं, यह झूठा है, मैं ठीक-ठीक कहता हूँ।

कोतवाल-अच्छा मुझे उस औरत के पास ले चलो, मैं खुद उससे पूछ लूँगा कि कौन झूठा है, और कौन सच्चा है।

पहला-क्या अभी तक वह उसी जगह होगी?

दूसरा-जरूर वहाँ होगी, यह बहाना करता है क्योंकि वहाँ जाने से यह झूठा साबित हो जाएगा।

पहला—(अपने भाई की तरफ देखकर) झूठा तू साबित होगा। अफसोस तो इतना ही है कि अब मुझे वहाँ का रास्ता भी याद नहीं।

दूसरा-(पहले की तरफ देखकर) तू रास्ता भूल गया तो क्या हुआ, मुझे तो याद है। (कोतवाल साहब की तरफ देखकर) मैं जरूर आपको वहाँ ले चलकर इसे झूठा साबित करूँगा! चलिए, मैं आपको वहाँ ले चलता हूँ।

कोतवाल-चलो।

कोतवाल साहब तो खुद बेचैन हो रहे थे, और चाहते थे कि जहाँ तक हो, वहाँ जल्द पहुँच कर देखना चाहिए कि वह औरत कैसी है जो मुझ पर आशिक हो तस्वीर सामने रख याद किया करती है। एक पिस्तौल भरी-भराई कमर में रख उन दोनों