पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११९

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नागर––बहुत अच्छी बात है। जब मनोरमा से वायदा कर चुकी हो तो मुझे विशेष कहने की कोई आवश्यकता नहीं।

कमलिनी––अच्छा तो आप अब मेरा एक काम करें।

नागर––कहिये।

कमलिनी––अपने किसी आदमी को भेज कर एक घोड़ा किराये का मँगवा दीजिए, जिस पर सवार होकर मैं मिर्जापुर जाऊँ, क्योंकि यद्यपि मैं ऐयार हूँ परन्तु रोहतासगढ़ से यहाँ तक तेजी के साथ आने के कारण बहुत सुस्त हो रही हूँ।

नागर––क्या मनोरमा के घर में घोड़ों की कमी है जो तुम्हारे लिए किराए का घोड़ा मँगवाया जाय।

इतना कह कर नागर चली गई। थोड़ी देर के बाद एक लौंडी आई जिसने कमलिनी को स्नान इत्यादि से छुट्टी पा लेने के लिए कहा। कमलिनी ने दो-एक जरूरी काम से तो छुट्टी पा ली, मगर स्नान करने से इन्कार किया और अपने बटुए से सामान निकाल कर चिट्ठी लिखने लगी।

घण्टे भर बाद सफर के सामान से लैस होकर कई लौंडियों को साथ लिए हुए नागर भी उसी जगह आ पहुँची जहाँ कमलिनी बैठाई गई थी। उस समय कमलिनी चिट्ठी लिख चुकी थी।

नागर––मैंने तुम्हारे पास इसलिए एक लौंडी भेजी थी कि तुम्हें नहला-धुला दे मगर तुमने...

कमलिनी––हाँ, मैंने स्नान नहीं किया क्योंकि इस समय अर्थात सूर्योदय के पहले स्नान करने की मेरी आदत नहीं। कहीं स्नान कर लूँगी, और कामों से छुट्टी पा चुकी हूँ।

नागर––खैर, कुछ मेवा खाकर जल पी लो।

कमलिनी––नहीं, इस समय माफ करो। हाँ, थोड़ा-सा मेवा साथ रख लूँगी जो सफर में काम आवेगा।

थोडी देर बाद दो घोड़े कसे-कसाये लाए गये, एक पर नागर और दूसरे पर कमलिनी सवार हुई। उस समय कमलिनी ने वह चिट्ठी जो अभी घण्टा-भर हुआ लिख कर तैयार की थी नागर के हाथ में दे दी और कहा, "इसे हिफाजत से रखो, मनोरमा को देकर मेरी तरफ से 'जय माया की' कहना।" वह चिट्ठी लिफाफे के अन्दर थी और जोड़ पर मोहर लगाई हुई थी।

बाग के बाहर निकल कर कमलिनी ने पश्चिम का रास्ता लिया और नागर पूरब की तरफ रवाना हुई।