पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२२

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भूतनाथ––बेशक ऐसा ही है। यदि वह मुट्ठा मेरे हाथ का लिखा हुआ न होता तो मुझे उसकी परवाह न होती।

नागर––हाँ, ठीक है, परन्तु इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि मुझे मारकर तू वे कागजात न पावेगा। खैर, जब मैं इस दुनिया से जाती ही हूँ तो क्या जरूरत है कि तुझे भी बर्बाद करती जाऊँ? मैं तेरी लिखी चीजें खुशी से तेरे हवाले करती हूँ, मेरा दाहिना हाथ छोड़ दे, मैं तुझे बता दूँ कि मुझे मारने के बाद वे कागजात तुझे कहाँ से मिलेंगे।

भूतनाथ इतना डरपोक और कमजोर भी न था कि नागर का केवल दाहिना हाथ जिसमें हर्बे की किस्म से एक काँटा भी न था, छोड़ने से डर जाय, दूसरे उसने यह भी सोचा कि जब यह स्वयं ही कागजात देने को तैयार है तो क्यों न ले लिये जाय, कौन ठिकाना इसे मारने के बाद कागजात हाथ न लगें। थोड़ी देर तक कुछ सोच-विचार कर भूतनाथ ने नागर का दाहिना हाथ छोड़ दिया जिसके साथ ही उसने फुर्ती से वह हाथ भूतनाथ के गाल पर दबा कर फेरा। भूतनाथ को ऐसा मालूम हुआ कि नागर ने एक सूई उसके गाल में चुभो दी, मगर वास्तव में ऐसा न था। नागर की उँगली में एक अँगूठी थी, जिस पर नगीने की जगह स्याह रंग का कोई पत्थर जड़ा हुआ था, वही भूतनाथ के गाल में गड़ा, जिससे एक लकीर-सी पड़ गई और जरा खून भी दिखाई देने लगा। पर मालूम होता है कि वह नोकीला स्याह पत्थर, जो अँगूठी में जड़ा हुआ था, किसी प्रकार का जहर-हलाहल था, जो खून के साथ मिलते ही अपना काम कर गया क्योंकि उसने भूतनाथ को बात करने की मोहलत न दी। वह एकदम चक्कर खा कर जमीन पर गिर पड़ा और नागर उसके कब्जे से छूट कर अलग हो गई।

नागर ने घोड़े की बागडोर, जो चारजामे में बँधी हुई थी खोली और उसी से भूतनाथ के हाथ-पैर बाँधने के बाद एक पेड़ के साथ कस दिया, इसके बाद उसने अपने ऐयारी के बटुए में से एक शीशी निकाली, जिसमें किसी प्रकार का तेल था। उसने थोड़ा तेल उसमें से भूतनाथ के गाल पर उसी जगह जहाँ लकीर पड़ी हुई थी, मला। देखते-ही-देखते उस जगह एक बड़ा फफोला पड़ गया। नागर ने खंजर की नोक से उस फफोले में छेद कर दिया, जिससे उसके अन्दर का कुल जहरी पानी निकल गया और भूतनाथ होश में आ गया।

नागर––क्यों बे कम्बख्त, अपने किये की सजा पा चुका या कुछ कसर है? तूने देखा, मेरे पास कैसी अद्भुत चीज है। अगर हाथी भी हो तो इस जहर को बर्दाश्त न कर सके और मर जाय, तेरी क्या हकीकत है!

भूतनाथ––बेशक ऐसा ही है और अब मुझे निश्चय हो गया कि मेरी किस्मत में जरा भी सुख भोगना बदा नहीं है।

नागर––साथ ही इसके तुझे यह भी मालूम हो गया कि इस जहर को मैं सहज ही में उतार भी सकती हूँ। इसमें सन्देह नहीं कि तू मर चुका था, मगर मैंने इसलिए तुझे जिला दिया कि अपने लिखे हुए कागजों का हाल दुनिया में फैला हुआ तू स्वयम् देख और सून ले, क्योंकि उससे बढ़कर कोई दुःख तेरे लिए नहीं है, पर यह भी देख ले