पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२६

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कहता है!

तेजसिंह––बेशक तू कम्बख्त बल्कि कमीना है, तू मेरी मदद क्या करेगा जब तू अपने ही को नहीं बचा सकता?

इतना सुनते ही वह आदमी चौकन्ना हो गया और बड़े गौर से तेजसिंह की तरफ देखने लगा। जब उसे निश्चय हो गया कि यह कोई ऐयार है, तब उसने खंजर निकाल कर तेजसिंह पर वार किया। तेजसिंह ने वार बचा कर उसकी कलाई पकड़ ली और एक झटका ऐसा दिया कि खंजर उसके हाथ से छूटकर दूर जा गिरा। वह और कुछ चोट करने की फिक्र में था कि तेजसिंह ने उसकी गर्दन में हाथ डाल दिया और बात-की-बात में जमीन पर दे मारा। वह घबरा कर चिल्लाने लगा, मगर इससे भी कुछ काम न चला क्योंकि उसकी नाक में बेहोशी की दवा जबर्दस्ती ढूँस दी गई और एक छींक मार कर वह बेहोश हो गया।

उस बेहोश आदमी को उठा कर तेजसिंह एक ऐसी झाड़ी में घुस गए जहाँ से आते-जाते मुसाफिरों को वे बखूबी देख सकते मगर उन पर किसी की निगाह न पड़ती। उस बेहोश आदमी को जमीन पर लिटा देने के बाद तेजसिंह चारों तरफ देखने लगे और जब किसी को न पाया तो धीरे से बोले, "अफसोस, इस समय मैं अकेला हूँ, यदि मेरा कोई साथी होता तो इसे रोहतासगढ़ भिजवा कर बेखौफ हो जाता और बेफिक्री के साथ काम करता! खैर कोई चित्ता नहीं, अब किसी तरह काम तो निकालना ही पड़ेगा।"

तेजसिंह ने ऐयारी का बटुआ खोला और आईना निकाल कर सामने रक्खा, अपनी सुरत ठीक वैसी ही बनाई जैसा कि वह आदमी था, इसके बाद अपने कपड़े उतार कर रख दिए और उसके बदन से कपड़े उतार कर आप पहन लेने के बाद उसकी सूरत बदलने लगे। किसी तेज दवा से उसके चेहरे पर कई जख्म के दाग ऐसे बनाये कि सिवाय तेजसिंह के दूसरा कोई छुड़ा ही नहीं सकता था और मालूम ऐसा होता था कि ये जख्म के दाग कई वर्षों से उसके चेहरे पर मौजूद हैं। इसके बाद उसका तमाम बदन एक स्याह मसाले से रंग दिया। इसमें यह गुण था कि जिस जगह लगाया जाय वह आबनूस के रंग की तरह स्याह हो जाय और जब तक केले के अर्क से न धोया जाय वह दाग किसी तरह न छूटे चाहे वर्षों बीत जायें।

वह आदमी गोरा था मगर अब पूर्णरूप से काला हो गया, चेहरे पर कई जख्म के निशान भी बन गये। तेजसिंह ने बड़े गौर से उसकी सूरत देखी और इस ढंग से गर्दन हिला कर उठ खड़े हुए कि जिससे उनके दिल का भाव साफ झलक गया। तेजसिंह ने सोच लिया कि बस इसकी सूरत बखूबी बदल गई, अब और कोई कारीगरी करने की आवश्यकता नहीं है और वास्तव में ऐसा ही था भी, दूसरे की बात तो दूर रही यदि उसकी माँ भी उसे देखती तो अपने लड़के को कभी न पहचान सकती।

उस आदमी की कमर के साथ ऐयारी का बटुआ भी था, तेजसिंह ने उसे खोल लिया और अपने बटुए की कुल चीजें उसमें रखकर अपना बटुआ उसकी कमर से बाँध दिया और वहाँ से रवाना हो गये।

तेजसिंह फिर उसी शिवालय के सामने आए और एक बेल के पेड़ के नीचे बैठ