पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१३४

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लेकर उठ बैठा और ताज्जुब से चारों तरफ देखने लगा।

मायारानी––अब तुम्हारा क्या हाल है?

बिहारीसिंह––हाल क्या कहूँ, मुझे ताज्जुब मालूम होता है कि मैं यहाँ क्योंकर आया, मेरी आवाज क्यों बैठ गई, और इतनी कमजोरी क्यों मालूम होती है कि मैं उठ कर चल-फिर नहीं सकता!

मायारानी––ईश्वर ने बड़ी कृपा की, जो तुम्हारी जान बच गई, तुम तो पूरे पागल हो गये थे, वैद्यराज ने भी ऐसी दवा दी कि एक ही खुराक में फायदा हो गया। बेशक उन्होंने इनाम पाने का काम किया। तुम अपना हाल तो कहो, तुम्हें क्या हो गया था?

बिहारीसिंह––(हरनामसिंह की तरफ देखकर) मैं एक ऐयार के फेर में पड़ गया सा, मगर पहले आप कहिए कि मुझे इस अवस्था में कहाँ पाया?

हरनामसिंह––आप मुझसे यह कहकर कि तुम थोड़ा-सा काम जो बच रहा है उसे पूरा करके जमानिया चले जाना, मैं कमलिनी से मुलाकात करके और जिस तरह होगा, उसे राजी करके जमानिमा आऊँगा-खँडहर वाले तहखाने से बाहर चले गये, परन्तु काम पूरा करने के बाद मैं सुरंग के बाहर निकला तो आपको शिवालय के सामने पेड़ के नीचे विचित्र दशा में पाया। (पागलपने की बातचीत और मायारानी के पास तक आने का खुलासा हाल कहने के बाद) मालूम होता है आप कमलिनी के पास नहीं गये?

बिहारीसिंह––(मायारानी से) जैसा धोखा मैंने अबकी खाया, आज तक नहीं खाया था। हरनामसिंह का कहना सही है। जब मैं सुरंग से निकलकर शिवालय से बाहर हुआ तो एक आदमी पर नजर पड़ी जो मामूली जमींदार की सूरत में था। वह मुझे देखते ही मेरे पैरों पर गिर पड़ा और गिड़गिड़ा कर कहने लगा कि "पुजारी महाराज, किसी तरह मेरे भाई की जान बचाइए!" मैंने उससे पूछा कि "तेरे भाई को क्या हुआ है?" उसने जवाब दिया कि "उसे एक बुढ़िया बेतरह मार रही है। किसी तरह उसके हाथ से छुड़ाइये।" वह जमींदार बहुत ही मजबूत और मोटा-ताजा था। मुझे ताज्जुब मालूम हुआ कि वह कैसी बुढ़िया है, जो ऐसे-ऐसे दो भाइयों से नहीं हारती! आखिर मैं उसके साथ चलने पर राजी हो गया। वह मुझे शिवालय से कुछ दूर एक झाड़ी में ले गया, जहाँ कई आदमी छिपे हुए बैठे थे। उस जमींदार के इशारे से सभी ने मुझे घेर लिया और एक ने चाँदी की एक लुटिया मेरे सामने रखकर कहा कि "यह भंग है इसे पी जाओ।" मुझे मालूम हो गया कि यह वास्तव में कोई ऐयार है जिसने मुझे धोखा दिया। मैंने भंग पीने से इनकार किया और वहाँ से लौटना चाहा, सभी ने भागने न दिया। थोड़ी देर तक मैं उन लोगों से लड़ा, मगर क्या कर सकता था क्योंकि वे लोग गिनती में पन्द्रह से कम न थे। आखिर में उन लोगों ने पटक कर मुझे मारना शुरू किया और जब मैं बेदम हो एया तो भंग या दवा जो कुछ हो मुझे जबर्दस्ती पिला दी, बस इसके बाद मुझे कुछ भी खबर नहीं कि क्या हआ।

थोड़ी देर तक इसी तरह की ताज्जुब की बातें कहकर बिहारीसिंह ने मायारानी