पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६५

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इस कम्बख्त को अपनी बहिन से बढ़ के मानती है। यह अँगूठी भी मनोरमा ही की है।

भूतनाथ––तो मायारानी ने यह अँगूठी क्यों न ले ली? उसके तो बड़े काम की चीज थी!

कमलिनी––उसको भी मनोरमा ने ऐसी ही अँगूठी बना दी है और जहर उतारने की दवा भी तैयार कर दी है मगर इसके बनाने की तरकीब नहीं बताती।

भूतनाथ––खैर, अब यह अँगूठी आप ले लीजिए।

कमलिनी––यद्यपि यह मेरे काम की चीज नहीं है बल्कि इसको अपने पास रखने में मैं पाप समझती हूँ तथापि जब तक मायारानी से खटपट चली जाती है तब तक यह अँगूठी अपने पास जरूर रक्खूगी (तिलिस्मी खंजर की तरफ इशारा करके) इसके सामने यह अँगूठी कोई चीज नहीं है।

भूतनाथ––बेशक बेशक! जिसके पास यह खंजर है उसे दुनिया में किसी चीज की परवाह नहीं और वह अपने दुश्मन से चाहे वह कैसा जबरदस्त क्यों न हो कभी नहीं डर सकता। आपने मुझ पर बड़ी ही कृपा की जो ऐसा खंजर थोड़े दिन के लिए मुझे दिया। आह, वह दिन भी कैसा होगा जिस दिन यह खंजर हमेशा अपने पास रखने की आज्ञा आप मुझे देंगी।

कमलिनी––(मुस्कुराकर) खैर, वह दिन आज ही समझ लो, मैं हमेशा के लिए यह खंजर तुम्हें देती हूँ, मगर नानक के लिए ऐसा करने की सिफारिश मत करना।

भूतनाथ ने खुश होकर कमलिनी को सलाम किया। कमलिनी ने नागर की उँगली से जहरीली अँगूठी उतार ली और उसके बटुए में से खोज कर उस दवा की शीशी भी निकाल ली जो उस अँगूठी के भयानक जहर को बात की बात में दूर कर सकती थी। इसके बाद कमलिनी ने भूतनाथ से कहा, "नागर को हमारे अद्भुत मकान में ले जाकर तारा के सुपुर्द करो और फिर मुझसे आकर मिलो। मैं फिर वहीं अर्थात् मनोरमा के मकान पर जाती हूँ। अपने कागजात भी उसके बटुए में से निकाल लो और इसी समय उन्हें जलाकर सदैव के लिए निश्चिन्त हो जाओ!"


6

मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रक्खा है, मगर उस बाग में दो औरतों की आँखों में नीद का नाम-निशान भी नहीं। एक तो मायारानी की छोटी बहिन लाड़िली, जो अपने सोने वाले कमरे में मसहरी के ऊपर पड़ी कुछ सोच रही है और थोड़ी-थोड़ी देर पर उठकर बाहर निकलती और सन्नाटे की तरफ ध्यान देकर लौट जाती है, मालूम होता है कि वह मकान से बाहर जाकर किसी से मिलने का मौका ढूँढ़ रही है और दूसरी मायारानी