पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
181
 

लगाने के लिए कई दिन नहीं तो कई पहर चाहिए।

इन्द्रजीतसिंह––तो क्या तुमने उन्हें अपनी आँखों से नहीं देखा?

कमलिनी––नहीं, मगर इतना जानती हूँ कि इस बाग के चौथे दर्जे में किसी ठिकाने वे कैद हैं।

इन्द्रजीतसिंह––क्या इस बाग के कई दर्जे हैं, जिसमें मायारानी रहती है और जहाँ हम लोग बेबस करके लाये गये थे?

कमलिनी––हाँ, इस बाग के चार दर्जे हैं। पहले में तो सिपाहियों और नौकरों के ठहरने का ठिकाना है, दूसरे दर्जे में स्वयं मायारानी रहती है, तीसरे और चौथे दर्जे में कोई नहीं रहता। हाँ, यदि कोई ऐसा कैदी हो जिसे बहुत ही गुप्त रखना मंजूर हो तो वहाँ भेज दिया जाता है। तीसरे और चौथे दर्जे को तिलिस्म कहना चाहिए, बल्कि चौथा दर्जा तो (काँपकर) ओफ, बड़ी-बड़ी भयानक चीजों से भरा हुआ है।

इन्द्रजीतसिंह––तो उसी चौथे दर्जे में हमारे माता-पिता कैद हैं?

कमलिनी––जी हाँ।

आनन्दसिंह––शायद तुम्हारी छोटी बहिन कुछ जानती हों जो तुम्हारे साथ हैं?

कमलिनी––नहीं-नहीं, यह बेचारी तीसरे और चौथे दर्जे का हाल कुछ भी नहीं जानती।

लाड़िली––बल्कि तीसरे और चौथे दर्जे का पूरा-पूरा हाल मायारानी को भी नहीं मालूम। कमलिनी बहिन को मालूम न था, मगर दो ही चार महीनों में ना मालूम क्योंकर वहाँ का विचित्र हाल इन्हें मालूम हो गया। देखिये, इसी सुरंग को जिसने हमें लोग जा रहे हैं, मायारानी भी नहीं जानती और मुझे तो इसका कुछ गुमान भी न था।

यहाँ पर कमलिनी के हाथ की वह मोमबत्ती जल कर पूरी हो गयी और कमलिनी ने उसे जमीन पर फेंक दिया। अब इस सुरंग में केवल उस कन्दील को रोशनी रह गई, जो ये लोग कैदखाने में से लाये थे और इस समय तारासिंह उसे अपने हाथ में लटकाये सभी के पीछे-पीछे आ रहे,थे। कमलिनी के कहे मुताबिक तारासिंह अब कन्दील लिए हुए आगे-आगे चलने लगे। लगभग बीस कदम जाने के बाद एक चौमुहानी मिली, अर्थात् वहाँ से चारों तरफ सुरंगें गई हुई थीं। कमलिनी ने रुककर इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखा और कहा, "अब यहाँ से अगर हम लोग चाहें तो इस तिलिस्मी मकान के बाहर निकल जा सकते हैं।"

इन्द्रजीतसिंह––यह सामने वाला रास्ता कहाँ गया है?

कमलिनी––बाग के तीसरे और चौथे दर्जे में जाने के लिए यही रास्ता है और बायीं तरफ वाली सुरंग उस दूसरे दर्जे में गई है, जिसमें मायारानी रहती है।

आनन्दसिंह और दाहिनी तरफ जाने से हम लोग कहाँ पहुँचेंगे?

कमलिनी––इस तिलिस्मी मकान या बाग से बाहर जाने के लिए वही राह है।

इन्द्रजीतसिंह––तो अब तुम हम लोगों को कहाँ ले जाना चाहती हो?

कमलिनी––जहाँ आप कहिए।

आनन्दसिंह––अगर मायारानी के बाग में ले चलो तो हम उसे इसी समय