पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
205
 

मगर तुमसे जरूर कहूँगी। परन्तु इसके पहले एक बात तुमसे पूछूँगी। क्योंकि बहुत देर से उसके पूछने की इच्छा लगी है, पर बातों का सिलसिला दूसरी तरफ हो जाने के कारण पूछ न सकी।

भूतनाथ––खैर, अब पूछ लीजिए।

मायारानी––मनोरमा को कमलिनी की कैद से छुड़ाने के लिए तुमने क्या विचारा है?

भूतनाथ––मनोरमा को यद्यपि मैं सहज ही छुड़ा सकता हूँ, परन्तु उसे भी इस ढंग से छुड़ाना चाहता हूँ कि कमलिनी को मुझ पर शक न हो। अगर जरा भी शक हो जायगा तो वह सम्हल जायगी क्योंकि वह बड़ी धूर्त और शैतान है।

मायारानी––सो तो ठीक है, मगर कोई बन्दोबस्त तो करना ही चाहिए।

भूतनाथ––हाँ-हाँ, उसका बन्दोबस्त बहुत जल्द किया जायगा।

मायारानी––अच्छा, तो अब वह भेद की बात भी तुमसे कहती हूँ, जिसे मैं अभी तक बड़ी कोशिश से छिपाये हुए थी, यहाँ तक कि अपनी प्यारी सखी मनोरमा को भी उस समय से आज तक मैंने कुछ नहीं कहा था। (नागर की तरफ देखकर) लो, तुम भी सुन लो।

मायारानी दो घण्टे तक अपने गुप्त भेदों की बात भूतनाथ से कहती रही और वह गौर से सुनता रहा और अन्त में मायारानी को कुछ समझा-बुझा कर और इनाम में हीरे की एक माला पाकर वहाँ से रवाना हुआ।


6

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एक दम बन्द है, यहाँ तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चाँद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तारों की रोशनी जो अब बहुतायत से दिखाई दे रहे हैं, काफी है। ऐसे समय में गंगा के किनारे-किनारे दो मुसाफिर तेजी के साथ जमानिया की तरफ जा रहे हैं। जमानिया अब बहुत दूर नहीं है और ये दोनों मुसाफिर शहर के बाहरी प्रान्त में पहुँच चुके हैं।

अब ये दोनों आदमी शहर के पास पहुँच गये। मगर शहर के अन्दर न जाकर बाहर-ही-बाहर मैदान के उस हिस्से की तरफ जाने लगे जिधर पुराने जमाने की आबादी का कुछ-कुछ निशान मौजूद था। यहाँ बहुत-से टूटे-फूटे मकानों के कोई-कोई हिस्से बचे हए थे जो बदमाशों तथा चोरों के काम में आते थे। यहाँ की निस्बत शहर के कमजोर दिमाग वालों और डरपोक आदमियों में तरह-तरह की गप्पें उड़ा करती थीं। कोई कहता था कि वहाँ किसी जमाने में बहुत-से आदमी मारे गये हैं और वे लोग भूत होकर अभी तक मौजूद हैं और उधर से आने-जाने वालों को सताया करते हैं, कोई कहता था