पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२२८

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लिया था, यहाँ तक कि राजा वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वालों और कमलिनी का ध्यान भी उसके दिल से जाता रहा था जिनके लिए सैकड़ों ऊटक-नाटक उसे रचने पड़े थे और ध्यान था केवल गोपालसिंह का। कहीं ऐसा न हो कि गोपालसिंह का असल भेद रिआया को मालूम हो जाय, इसी सोच ने उसे बेकार कर दिया था। मगर आज वह भूतनाथ की बदौलत अपने को हर तरह से बेफिक्र मानती है, आई हुई बला को टला समझती है, और उसे विश्वास है कि अब कुछ दिन तक चैन से गुजरेगी। अब उसे केवल यही फिक्र रह गई कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के हाथ से तिलिस्म टूटने न पावे और कमलिनी को, जो यहाँ का बहुत-कुछ हाल जानती है और उन दोनों कुमारों से मिली हुई है किसी-न-किसी तरह गिरफ्तार करना या मार डालना चाहिए जिसमें तिलिस्म तोड़ने में वह इन दोनों कुमारों को मदद न पहुँचा सके। वह समझती है कि इस समय केवल इस तिलिस्म की बदौलत ही हर एक पर मैं अपना रुआब जमा सकती हूँ और बड़े-बड़े महाराजों के दिल में भी डर पैदा कर सकती हूँ, इतना ही नहीं, बल्कि जो चाहे कर सकती हूँ, और जब तिलिस्म ही न रहेगा तो मैं एक मामूली जमींदार के बराबर भी न समझी जाऊँगी, इत्यादि।

वास्तव में मायारानी का सोचना बहुत ठीक था, लेकिन फिर भी आज उसका दिमाग फिर आसमान पर चढ़ा हुआ है। भूतनाथ ऐसा ऐयार पाकर वह बहुत प्रसन्न हैक्षऔर उसे निश्चय है कि मैं जो चाहूँगी कर गुजरूँगी, हाँ लाड़िली के चले जाने का उसे जरूर बहुत बड़ा रञ्ज है।

जिस समय अजायबघर की ताली लेकर भूतनाथ उससे बिदा हुआ उस समय रात बहुत कम बाकी थी और मायारानी रात-भर की थकी और जागी हुई थी इसलिए चारपाई पर जाते ही सो गई और पहर भर दिन चढ़े तक सोई रही। जब धनपत ने आकर जगाया तो उठी और मामूली कामों से छुट्टी पाकर हँसी-दिल्लगी में उसके साथ समय बिताने लगी। दिन तो हँसी-दिल्लगी में बीत गया, मगर रात को उसने आश्चर्यजनक घटना देखी जिससे वह बहुत परेशान और दुखी हुई।

आधी रात जा चुकी है। मायारानी अपने कमरे में जो कीमती चीजों से भरा था, खूबसूरत जड़ाऊ पायों की मसहरी पर गाढ़ी नींद में सोई हुई है। कमरे के बाहरहाथ थमें नंगी तलवार लिए नौजवान और कमसिन लौंडियाँ पहरा दे रही हैं। जिस समय सोने के इरादे से पलंग पर जाकर मायारानी ने आँखें बन्द की उस समय केवल एक बिल्लौरी हाँडी के अन्दर खुशबूदार तेल से भरे हुए बिल्लौरी गिलास में हलकी रोशनी हो रही थी और कमरे का दरवाजा भिड़काया हुआ था, मगर इस समय न जाने वह रोशनी क्यों गुल हो गई थी और कमरे के अन्दर अन्धकार हो रहा था।

मायारानी यद्यपि रानी, नौजवान और हर तरह से सुखिया थी मगर उसकी नींद बहुत ही कच्ची थी। जरा खुटका पाते ही वह उठ बैठती थी। इस समय भी यद्यपि वह गहरी नींद में सोई थी मगर शीशे के एक शमादान के टूटने और झन्नाटे की आवाज आने से चौंककर उठ बैठी। कमरे में अंधकार देख वह चारपाई से नीचे उतरी और टटोलती हुई दरवाजे के पास पहुँची मगर दरवाजा खोलना चाहा तो मालूम हुआ कि

च॰ स॰-2-14