पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२५

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हुई है उसी को बचाने जा रहे हैं।

देवीसिंह––किस आफत में फँसी है?

कुमार––इतना कहने का मौका नहीं है।

देवीसिंह––यह औरत आपको अवश्य धोखा देगी जिसके साथ आप जा रहे हैं।

कुमार––ऐसा नहीं हो सकता, यह बड़ी ही नेक और मेरी हमदर्द है।

इतना सुनते ही कमलिनी आगे बढ़ आई और देवीसिंह से बोली––

कमलिनी––मैं खूब जानती हूँ कि आप लोगों को मेरी तरफ से शक है, तथापि मुझे कहना ही पड़ता है कि इस समय आप हम लोगों को न रोकें, नहीं तो पछताना पड़ेगा। यदि आप लोगों को मेरी और कुमार की बात का विश्वास न हो तो मेरे सवारों में से दो आदमी घोड़ों पर से उतर पड़ते हैं, उनके बदले में आप दोनों आदमी घोड़ों पर सवार होकर साथ चलें और देख लें कि हम आपके खैरख्वाह हैं या बदख्वाह।

देवीसिंह––बेशक यह अच्छी बात है और मैं इसे मंजूर करता हूँ।

कमलिनी के इशारा करते ही दो सवारों ने घोड़ों की पीठ खाली कर दी। उनके बदले में देवीसिंह और शेरसिंह सवार हो गए और फिर उसी तरह सफर शुरू हुआ। इस समय कुछ-कुछ सूरज निकाल चुका था और सुनहरी धूप ऊँचे पेड़ों के ऊपर वाले हिस्सों पर फैल चुकी थी।

आधे घण्टे और सफर करने के बाद वे लोग उस जगह पहुँचे जहाँ धनपति ने किशोरी को जलाकर खाक कर डालने के लिए चिता तैयार की थी और जहाँ से दीवान अग्निदत्त लड़-भिड़कर किशोरी को ले गया था। इस समय भी वह चिता कुछ बिगड़ी हुई सूरत में तैयार थी और इधर-उधर बहुत-सी लाशें पड़ी हुई थीं। उस जगह पहुँचकर तारा ने घोड़ा रोका और इसके साथ ही सब लोग रुक गये। तारा ने कमलिनी की तरफ देखकर कहा––

तारा––बस, इसी जगह मैं आप लोगों को लाने वाली थी, क्योंकि इसी जगह धनपति के बहुत से आदमी मौजूद थे और यहीं वह किशोरी को लेकर आने वाली थी। (लाशों की तरफ देखकर) मालूम होता है, यहाँ बहुत खून-खराबा हुआ है!

कमलिनी––तूने कैसे जाना कि किशोरी को लेकर धनपति इसी जगह आने वाली थी और धनपति को तूने कहाँ छोड़ा था?

तारा––रात के समय खूब छिपकर धनपति के आदमियों की बात मैंने सुनी थी जिससे बहुत-कुछ हाल मालूम हुआ था और धनपति को मैंने उसी खोह के मुहाने पर छोड़ा था जो रोहतासगढ़ तहखाने से बाहर निकलने का रास्ता है और जहाँ सलई के दो पेड़ लगे हैं। उस समय बेहोश किशोरी धनपति के कब्जे में थी और धनपति के कई आदमी वहाँ मौजूद थे। उन लोगों की बातें सुनने से मुझे विश्वास हो गया था कि वे लोग किशोरी को लिए हुए इसी जगह आवेंगे। (एक लाश की तरफ देख के और चौंक के) देखिए, पहिचानिए।

कमलिनी––बेशक यह धनपति का नौकर है। (और लाशों को भी अच्छी तरह देखकर) बेशक धनपति यहाँ तक आई थी, पर किसी से लड़ाई हो गई जो इन लाशों को